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________________ नामकरण ३. जीवामिगम प्रस्तुत आगम में जीवाभिगम या जीवाधिगम तृतीय उपांग है। श्रमण भगवान महावीर और गणधर गौतम के प्रश्न और उत्तर के रूप में जीव और अजीव के भेद और प्रभेदों की चर्चा की गई है। इसमें 8 प्रकरण ( प्रतिपत्ति), एक अध्ययन, १८ उद्देशक, ४७५० उपलब्ध श्लोक प्रमाण पाठ हैं । २७२ गद्य सूत्र और ८१ पद्यगाथा हैं। टीकाकार आचार्य मलयगिरि ने प्रस्तुत आगम को स्थानांग का उपांग लिखा है। उन्होंने अपनी वृत्ति में अनेक स्थलों पर वाचनाभेद का भी उल्लेख किया है ।' परम्परा की दृष्टि से प्रस्तुत आगम में २० उद्देशक थे और बीसवें उद्देशक की व्याख्या शालिभद्रसूरि के शिष्य चन्द्रसूरि ने की थी । अभयदेव ने भी इसके तृतीय पद पर संग्रहणी लिखी थी । प्रथम प्रतिपत्ति पहली जीवाजीवाभिगम प्रतिपत्ति है। उसमें जीव और अजीव के दो-दो भेद किये हैं फिर धर्म-अधर्म आदि के रूप में अजीव के भेद किये हैं फिर संसारी जीव के त्रस व स्थावर ये दो भेद हैं। स्थावर जीव के पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय ये तीन भेद किये हैं और पृथ्वीकाय के सूक्ष्म व बादर भेद करके शरीर अवगाहना, संघयण, संस्थान, कषाय, लेश्या, संज्ञा, इन्द्रिय, समुद्घात, संज्ञी, असंज्ञी, पर्याप्ति, दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, योग, उपयोग, आहार, उपपात स्थिति, समोहिया असमोहिया मरण, च्यवन, गति और आगति, ये द्वार सभी में घटाये गये हैं । वनस्पतिकाय के सूक्ष्म और बादर ये दो भेद किये हैं । बादर वनस्पति के प्रत्येक व साधारण और प्रत्येक के वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, पर्व, तृण, वलय, १ इह मूयान् पुस्तकेषु वाचनाभेदो गलितानि च सूत्राणि बहुषु पुस्तकेषु यथावस्थित वाचनाभेद प्रतिपत्त्यर्थं गलितसूत्रोद्धरणार्थं चैवं सुगमान्यपि विब्रियन्ते । ( जीवाजीवाभिगम टीका ३, ३७६)
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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