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अंगबाह्य आगम साहित्य २१५ जीवन का सारा नक्शा बदल गया। कोयले की तरह जिसका जीवन कालाकलूटा था वह केशीश्रमण रूपी अग्नि के स्पर्श से स्वर्ण की तरह चमकने लगा। वह अपने राज्य, बल, वाहन, भंडार, कोष्ठागार, ग्राम, नगर और अंतःपुर से उदासीन होकर सदा आत्मसाधना में तल्लीन रहने लगा। रानी सूर्यकांता ने जब राजा की उदासीन वृत्ति देखी तो उसे वह अच्छी नहीं लगी। वह राजा को विष प्रयोग से मारकर अपने पुत्र को राजगद्दी पर बिठाने का उपाय सोचने लगी। उसने एक दिन राजा के भोजन व वस्त्रों में विष मिला दिया जिससे भोजन करते ही और वस्त्राभूषण धारण करते ही राजा के शरीर में अपार वेदना होने लगी।
राजा प्रदेशी समझ गया किन्तु रानी के प्रति उसके अन्तर्मानस में तनिक भी रोष पैदा नहीं हआ। उसने पौषधशाला में जाकर अपने समस्त कृत्यों की आलोचना की। वह समाधिपूर्वक शरीर का त्याग कर सौधर्म स्वर्ग में सूर्याभ नामक देव हुआ। सूर्याभदेव के अतुल समृद्धि प्राप्त करने का यही रहस्य है।
देवलोक से च्युत होकर सूर्याभदेव महाविदेह में दृढ़प्रतिज्ञ राजकुमार होगा और जलकमल के समान निर्लेप भाव से जीवन यापन करके मोक्ष प्राप्त करेगा। उपसंहार
प्रस्तुत आगम की अनेक विशेषताएँ हैं। इसमें स्थापत्य, संगीत और नाट्यकला की दृष्टि से अनेक तत्त्वों का समावेश हुआ है। ३२ प्रकार के नाटकों का उल्लेख है जो सूर्याभदेव ने भगवान के सामने किये थे। लेखन संबंधी सामग्री का भी निर्देश किया गया है। साम, दाम और दंड नीति के अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन है। ७२ कलाएँ, ४ परिषद्, कलाचार्य, शिल्पाचार्य और धर्माचार्य का निरूपण है । पार्श्वनाथ परम्परा सम्बन्धी अनेक बातों की जानकारी होती है। काव्य और कथाओं के विकास के लिए वार्तालाप और संवादों का आदर्श यहाँ उपस्थित किया गया है।