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२१४ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा बर्तन से ढंक दिया जाय तो वह बर्तन के भाग को ही प्रकाशित करेगा। दीपक दोनों स्थानों पर वही है। स्थान विशेष की दृष्टि से उसके प्रकाश में संकोच और विस्तार होता है। यही बात हाथी और चींटी के जीव के सम्बन्ध में समझनी चाहिये। संकोच और विस्तार दोनों ही अवस्थाओं में उसकी प्रदेश संख्या न्यूनाधिक नहीं होती, समान ही रहती है।
केशीकुमार श्रमण के अकाट्य तर्कों को सुनकर राजा प्रदेशी की सभी शंकाओं का समाधान हो गया। उसने कहा, आपका कथन तो ठीक है किन्तु जो मेरा मन्तव्य है कि जीव और शरीर एक है वह मेरा ही नहीं किन्तु मेरे पिता की भी यही धारणा थी। अतः मैं अपने पैतृक मन्तव्य को कैसे छोड़ सकता हूँ?
केशी-तू भी लोहे के वजन को उठाने वाले उसी मढ़ व्यक्ति के समान दिखलाई देता है।
कुछ व्यक्ति धन की अभिलाषा से विदेश प्रस्थित हुए। कुछ दूर चलने पर उन्होंने लोहे की खदान देखी, बड़े प्रसन्न हुए। वे सभी लोहे को लेकर आगे बढ़े तो तांबे की खदान मिली। लोहा छोड़कर उन्होंने तांबा लिया। फिर चाँदी की खदान आने पर ताँबा छोड़कर चांदी ली। आगे बढ़ने पर सोने की खदान मिली तो उन्होंने चाँदी छोड़कर सोना ग्रहण किया। उसके बाद रत्नों की खदान आने पर सोने को छोड़कर रत्न लिए। वहाँ से कुछ दूर आगे बढ़ने पर बहुमूल्य वज्ररत्न की खदान मिली। उन्होंने उन रत्नों को छोड़कर बज्ररत्न लिए। उनका एक साथी जिसने सर्वप्रथम लोहा लिया था, वह अपने साथियों के अस्थिर मस्तिष्क की हंसी उड़ाने लगा। उसके साथियों ने उसे बहुत समझाया कि लोहे को छोड़कर बहुमूल्य रत्न ले लो। इससे तुम्हारी सम्पूर्ण दरिद्रता मिट जायगी। पर वह न माना। उसने कहा-इतनी दूर से लाये हुए लोहे को कैसे त्याग दूं? उसके साथी जिन्होंने रत्न लिये थे वे सभी श्रीमंत हो गये और वह वैसा ही भिखारी और दरिद्र बना रहा। जब अपने साथियों को श्रीसंपन्न देखता है तो उसे महान पश्चात्ताप होने लगता है कि मैंने भयंकर भूल की। वैसे ही तू केवली प्ररूपित धर्म को स्वीकार नहीं करेगा तो तुझे भी पश्चात्ताप होगा।
प्रदेशी ने केशीश्रमण से धर्म के मर्म को श्रवण कर श्रावकव्रत ग्रहण किये । जो पहले अधार्मिक था, जिसके हाथ सदा खून से रंगे रहते थे, उसके