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अंगबाह्य आगम साहित्य २१३ अन्तर नहीं पड़ता। जीव अमूर्त है । उसका अपना कोई वजन नहीं होता । अत: जीव के निकल जाने पर भी मृतक का वजन न्यून नहीं होता ।
प्रदेशी --- मैंने एक बार किसी तस्कर के शरीर का परीक्षण किया किन्तु मुझे जीव दिखाई नहीं दिया। मैंने उसके शरीर के प्रत्येक अंग और उपांग को काटकर देखा किन्तु कहीं पर भी जीव दिखाई नहीं दिया। अतः स्पष्ट है कि जीव का अभाव है ।
केशी- अरे प्रदेशी ! मुझे लगता है कि तू मूढ़ है। तेरी सारी प्रवृत्ति तो मुझे ऐसी लगती है जैसे कुछ व्यक्ति जंगल में पहुँचे। उनके साथ अग्नि थी। उन्होंने अपने एक साथी से कहा कि हम सभी दूर जंगल में जाकर लकड़ियाँ ले आते हैं तब तक तुम इस अग्नि से आग जलाकर हमारे लिए भोजन तैयार कर रखना। कदाचित् अग्नि बुझ जाय तो इन अरणी की लकड़ियों को घिसकर आग प्रगट कर लेना । उसके साथी चले गये और वह आग, जो साथ में थी, बुझ गई। उसने अपने साथियों की सलाह के अनुसार लकड़ियों को इधर-उधर उलट-पलट कर देखा किन्तु कहीं पर भी आग नजर नहीं आई । कुल्हाड़ी से लकड़ियों को चीर-चीरकर टुकड़े-टुकड़े कर दिये किन्तु आग नहीं मिली। वह निराश और हताश होकर सोचने लगा कि मेरे साथियों ने मेरे साथ हँसी की है। यदि वे इन लकड़ियों में आग की बात नहीं कहते तो मैं उस अग्नि को ही संभाल कर रखता । भूखे-प्यासे साथी लकड़ियाँ लेकर लौटे तो देखा कि भोजन तैयार नहीं हुआ है। एक साथी ने उन अरणी की लकड़ियों को घिसकर अग्नि तैयार की और सभी ने भोजन किया । जैसे वह लकड़हारा लकड़ी को चीरकर आग पाने की इच्छा रखता था वैसे ही तुम भी शरीर को चीरकर जीव को देखने की इच्छा रखते हो, क्या तुम भी उस मूर्ख लकड़हारे की तरह ही नहीं हो ?
प्रदेशी - जैसे कोई व्यक्ति अपनी हथेली पर रखकर आंवला स्पष्ट रूप से दिखाता है वैसे ही क्या आप भी जीव को दिखा सकते हैं ?
केशी-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, अशरीरी जीव, परमाणु पुद्गल, शब्द, गंध और वायु, इन आठ पदार्थों को विशिष्ट ज्ञानी देख सकते हैं, अज्ञानी नहीं ।
प्रदेशी क्या हाथी और चींटी में एक समान जीव होता है ?
केशी- हाँ, एक समान होता है। जैसे कोई व्यक्ति किसी कमरे में दीपक जलाए तो वह संपूर्ण कमरे को प्रकाशित करता है। यदि उसे किसी