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________________ २१२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा भेद कर अन्दर जा सकता है और निकल भी सकता है। अत: इससे जीव और शरीर की एकता सिद्ध नहीं होती। प्रवेशी--एक व्यक्ति धनुर्विद्या में कुशल है किन्तु वही व्यक्ति बाल्यावस्था में एक भी बाण नहीं छोड़ सकता था। यदि बाल्यावस्था व युवावस्था में जीव एक होने से एक सदृश शक्ति होती तो मैं समझता कि जीव और शरीर भिन्न हैं। केशी-----धनविद्या में निष्णात कोई व्यक्ति नये धनुष बाण द्वारा जितनी कुशलता दिखा सकता है उतनी कुशलता वह पुराने जीर्ण-शीर्ण धनुष बाण से नहीं दिखा सकता। सारांश यह है कि धनुर्विद्यानिष्णात व्यक्ति शक्तिशाली तो है, पर उपकरणों की कमी के कारण वह अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं कर सकता। इसी प्रकार मंदज्ञान वाला व्यक्ति उपकरणों की कमी के कारण अपनी शक्ति नहीं दिखा सकता। युवावस्था में उपकरण शक्तिमान् होने से उसकी शक्ति बढ़ जाती है। प्रवेशी-कोई युवक लोहे, सीसे या जस्ते का भार अच्छी तरह से उठा सकता है किन्तु वृद्धावस्था आने पर वही व्यक्ति भार वहन करने में असमर्थ हो जाता है और लकड़ी के सहारे चलता है। दोनों अवस्थाओं में जीव एक ही हो तो ऐसा क्यों होता है ? तरुणावस्था की भांति यदि वृद्धावस्था में भी भार वहन करने का सामर्थ्य रहता तो आपका कथन सत्य होता किन्तु ऐसा होता नहीं । इससे यह समझा जा सकता है कि जीव और शरीर दोनों भिन्न नहीं हैं। केशी- हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति ही भार वहन कर सकता है। यदि किसी हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति के पास नई कावड़ हो तो वह गुरुतर भार उठाकर ले जा सकता है। यदि जीर्ण-शीर्ण कावड़ है तो वह उससे भार नहीं उठा सकता। यही बात वृद्ध और तरुण के संबंध में है। प्रवेशी--अच्छा, तो एक दूसरा प्रश्न है। किसी तस्कर को पहले हम जीवित अवस्था में तोलें फिर उसे मारकर तोलें तो दोनों अवस्थाओं में चोर के वजन में कोई अन्तर नहीं होता। अत: जीव और शरीर की अभिनता ही सिद्ध होती है। केशी-जैसे खाली और हवा से भरी हई मशक के वजन में विशेष कोई अन्तर नहीं पड़ता वैसे ही जीवित पुरुष और मृत पुरुष के वजन में कोई
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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