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२०८ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा नगरी थी। उसके उत्तरपूर्व में मगवन नामक उद्यान था। इस नगरी का राजा प्रदेशी' था । वह अधार्मिक, प्रचण्ड व क्रोधी था। अत्यन्त मायावी था। गुरुजनों का वह कभी भी सत्कार-सन्मान नहीं करता था। श्रमण व ब्राह्मणों पर उसे विश्वास ही नहीं था। उसकी रानी का नाम सूर्यकान्ता और पुत्र का नाम सूर्यकान्त था, जो उसके राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोष, कोष्ठागार और अन्तःपुर की निगरानी किया करता था।
राजा प्रदेशी के चित्त नामक एक सारथी था । वह साम, दाम, दंड और भेद नीतियों में अत्यन्त कुशल था। प्रबल प्रतिभासम्पन्न होने के कारण राजा प्रदेशी समय-समय पर उससे परामर्श लिया करता था।
कुणाला जनपद में श्रावस्ती नाम की एक नगरी थी। वहाँ का राजा जितशत्रु राजा प्रदेशी का आज्ञाकारी सामन्त था। एक बार राजा प्रदेशी ने अपने चित्त सारथी को बुलाकर कहा कि 'यह भेंट लेकर श्रावस्ती जाओ और कुछ समय राजा जितशत्र के साथ रहकर वहाँ के शासन की देखभाल करो।' तदनुसार चित्त सारथी वहाँ जाता है और उपहार प्रदान कर वहाँ पर रहता है। उस समय चतुर्दशपूर्वधारी पाश्र्वापत्य केशीकुमार श्रमण वहाँ पर पधारते हैं। उनके आगमन को श्रवण कर हजारों की जनमेदनी दर्शनार्थ उमड़ पड़ी, जिसे देखकर चित्त सारथी ने कंचुकी पुरुष को बुलाकर पूछा कि 'आज कौन सा महोत्सव है जिसके कारण इतनी चहल-पहल हो रही है ?' कंचुकी ने केशीश्रमण के पधारने की बात कही। चित्त सारथी भी केशीश्रमण की सेवा में पहुँचा। केशीश्रमण ने सर्व प्राणातिपात विरमण, सर्व मृषावाद विरमण, सर्व अदत्तादान विरमण और सर्व बहिद्धादान विरमण का उपदेश दिया।
महावीर वहां पधारे थे। यह स्थान श्रावस्ती (सहेट महेट) से १७ मील और बलरामपुर से ६ मील की दूरी पर अवस्थित था। दीघनिकाय के पायास्सिसुत्त में राजा पायासि के प्रश्नोत्तर हैं। जो इन प्रश्नों । से मिलते-जुलते हैं । वहाँ पर पायासि को कोशल के राजा पसेनदि का वंशधर
कहा है। २ दीघनिकाय में चित्त के स्थान पर खत्ते शब्द का प्रयोग हुआ है। खत्ते का पर्यायवाची संस्कृत में क्षत-क्षता होता है। जिसका अर्थ सारथी है।
देखिये-रायपसेणयसुत्त का सार, पृ०६६-६० बेचरवास दोशी ३ स्थानांग वृत्ति पृ०२०२ में बहिद्धा का अर्थ मैथुन और आदान का अर्थ परिग्रह
किया है।