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________________ बाह्य आगम साहित्य २०७ पधारे और आम्रसाल वन में विराजे । राजा-रानी भगवान के उपदेश श्रवणार्थं पहुँचे । उपदेश श्रवण कर परिषद के लोग अत्यन्त प्रसन्न भाव से कहने लगे-निर्ग्रन्थ प्रवचन का जैसा सुन्दर प्रतिपादन आपने किया है वैसा अन्य कोई श्रमण या ब्राह्मण नहीं कर सकता। उस समय सौधर्मस्वर्ग के सूर्याभ नामक देव ने अपने दिव्य ज्ञान से देखा कि श्रमण भगवान महावीर इस समय आम्रसालवन चैत्य में विराज रहे हैं। उसने वहीं से भगवान को वंदन किया और अपने आभियोगिक देवों को आदेश दिया कि वे शीघ्र ही महावीर की सेवा में पहुँचें और वहाँ की जमीन आदि को साफ करें, सुगंधित जल से छिड़काव करें, पुष्पों की वर्षा करें तथा सुगंधित द्रव्यों से महका दें। तदनुसार किया गया । सूर्याभदेव ने अपने सेनापति को बुलाकर सुधर्मा सभा में टंगे हुए घंटे को जोर-जोर से बजवा कर अपने अधीन देवों को तैयार किया और अत्यन्त सुन्दर कलात्मक विमान की रचना की। उसमें बैठकर भगवान की सेवा में आया। उसने भगवान से प्रश्न किये और गौतम आदि निर्ग्रन्थ श्रमणों के समक्ष ३२ प्रकार की नृत्यकला प्रदर्शित करने की भावना व्यक्त की। उसने प्रेक्षा मंडप आदि की रचना कर अनेक प्रकार के वाद्य बनाये; जिनका ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व है। तत्पश्चात् देव व देवकुमारियों ने ३२ प्रकार के नाटक किये । ३२वें नाटक में भगवान महावीर के च्यवन, गर्भसंहरण, जन्म, अभिषेक, बालक्रीडा, यौवनावस्था, गृहस्थावास, महाभिनिष्क्रमण, तपश्चरण, ज्ञानप्राप्ति, तीर्थप्रवर्तन और परिनिर्वाण संबंधी घटनाओं का अभिनय किया गया था । अभिनय समाप्त होने के पश्चात् सूर्याभदेव नमस्कार कर विमान में बैठकर अपने स्थान को लौट गया । उसके बाद सूर्याभदेव के विमान के सम्बन्ध में गौतम ने प्रश्न किया। भगवान महावीर ने विस्तार से सूर्याभदेव के विमान पर प्रकाश डाला । गौतम ने द्वितीय प्रश्न किया कि यह महान् ऋद्धि सूर्याभदेव को किन शुभकर्मों से प्राप्त हुई है। भगवान ने इस प्रश्न का जो उत्तर प्रदान किया --- वह इस आगम का द्वितीय विभाग है, वह इस प्रकार है केकय अर्ध जनपद में सेयविया (श्वेताम्बिका) नाम की एक सुन्दर १ जैन साहित्य में २५३ आयें क्षेत्रों की परिगणना की गई है जिन क्षेत्रों में श्रमण सुखपूर्वक विहार कर सकते थे। केकय देश श्रावस्ती के उत्तर-पूर्व नेपाल की तराई में था। बौद्ध साहित्य में सेयविया को सेतव्या लिखा है। भगवान
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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