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________________ २. राजप्रश्नीयसूत्र नामकरण राजप्रश्नीय द्वितीय उपांग है। नंदीसूत्र में इसका नाम 'रायपसेणिय' मिलता है ।' आचार्य मलयगिरि ने 'रायपसेणीअ' नाम दिया है। वे इसका संस्कृत रूप 'राजप्रश्नीय-राजप्रश्नेषु भवं' करते हैं। सिद्धसेनगणी ने तत्त्वार्थवृत्ति में 'राजप्रसेनकीय' लिखा है, तो मुनि चंद्रसूरि ने 'राजप्रसेनजित' लिखा है। आचार्य मलयगिरि ने रायपसेणइय को सूत्रकृतांग का उपांग सिद्ध करते हए लिखा है कि सूत्रकृतांग में जो क्रियावादी, अक्रियावादी प्रभृति पाखंडियों के भेदों की परिगणना की गई है उनमें से अक्रियावादियों के मत का अवलंबन लेकर राजा प्रदेशी ने केशीश्रमण से प्रश्नोत्तर किए। अतः रायपसेणइय सूत्रकृतांग का उपांग है। डा०विटरनित्ज का अभिमत है कि प्रस्तुत आगम में पहले राजा प्रसेनजित की कथा थी। उसके पश्चात् प्रसेनजित के स्थान में पएस लगाकर प्रदेशी के साथ इसका सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास किया गया है। प्रस्तुत आगम दो विभागों में विभक्त है। प्रथम विभाग में सूर्याभ नामक देव भगवान महावीर के समक्ष उपस्थित होकर नत्य करता है और विविध प्रकार के नाटकों की रचना करता है । दूसरे विभाग में राजा प्रदेशी का केशीकुमारश्रमण से जीव के अस्तित्व और नास्तित्व को लेकर संवाद है। प्रस्तुत आगम का प्रारम्भ आमलकप्पा नगरी के वर्णन से होता है। वह नगरी चंपानगरी के समान ही अत्यन्त सुन्दर थी। उसके उत्तर-पूर्व में आम्रसाल नामक चैत्य था। वह चैत्य वनखंड से वेष्टित था। वहाँ का राजा सेय था और रानी का नाम धारिणी था। भगवान महावीर वहाँ पर १ नंदीसूत्र ८३ २ बौद्ध साहित्य में 'अल्लकप्पा' नाम आता है। यह स्थान शाहाबाद जिले में मसार और वैशाली के बीच में अवस्थित था।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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