________________
अंगबाह्य आगम साहित्य
२०५
अन्त में २२ गाथाओं में यह प्रतिपादित किया गया है कि सिद्ध अलोक के नीचे हैं और लोक के ऊपर हैं । तिर्छ लोक में वे शरीर त्याग करते हैं और सिद्ध लोक में रहते हैं। सिद्धात्माओं का संस्थान, सिद्धों की जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट अवगाहना, एक में अनेक सिद्धात्मा, सिद्धात्माओं का लोकान्त से स्पर्श, सिद्धात्माओं का परस्पर स्पर्श, सिद्धों का लक्षण, सिद्धों का ज्ञान, सिद्धों की दृष्टि, और अंत में सिद्धों के अनुपम सुख का वर्णन एक भीलपुत्र के उदाहरण से प्रस्तुत किया गया है। उपसंहार
इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रस्तुत आगम की अपनी अनेक विशेषताएँ हैं । नगर, चैत्य, राजा एवं रानियों का सांगोपांग वर्णन है। यह वर्णन अन्य आगमों के लिए आधारभूत है अतः इसी ग्रन्थ का उल्लेख स्थान स्थान पर किया गया है।
चंपानगरी का अलंकारिक वर्णन सर्वप्रथम इसी में है। इस प्रकार का सूक्ष्म और पूर्ण वर्णन संस्कृत साहित्य में भी कम दृष्टिगोचर होता है। संस्कृति और समाज की दृष्टि से भी इस आगम का महत्व है। धार्मिक और नैतिक मूल्यों की स्थापना भी की गई है। इसकी भाषा उपमाबहुल, समासबहुल और विशेषणबहुल है।