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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य २०३ वर्णन भी आगम में है। उनके ३४ बुद्ध वचनातिशय, ३५ सत्य वचनातिशय, अशोक वृक्ष आदि प्रातिहार्यों का वर्णन है। भगवान के समवसरण में भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक चारों प्रकार के देव व देवियां, आर्य और अनार्य सभी उपस्थित होते थे। भगवान अर्धमागधी भाषा में जो उपदेश देते वह सभी आर्य-अनार्य भाषाओं में स्वयमेव ही अनुवादित होकर सुनाई देता था। भगवान के धर्मोपदेश के मुख्य विषय ये थे-लोक, अलोक, जीवादि नवतत्त्व, उत्तम पुरुष, चार गति, माता-पिता व गुरुजनों की भक्ति, निर्वाणसाधना, १८ पाप प्रवृत्तियों का परिचय और उनसे निवृत्ति, अस्तिनास्तित्ववाद, शुभाशुभकर्मफल तथा सर्वथा कर्मक्षय होने से मुक्ति होती है आदि । नरक, तिर्यंच मनुष्य व देवगति के चार-चार कारण, आगार व अनगार धर्म का परिचय श्रवण कर अनेकों का आगारधर्म ग्रहण करना और कूणिक आदि का स्वस्थान गमन । इस तरह समवसरण का वर्णन है। इसके पश्चात् गणधर गौतम का शारीरिक व आध्यात्मिक परिचय दिया गया है । गणधर गौतम ने प्रश्न किये। असंयत यावत् एकान्त सुप्त के पापकर्मों का आगमन, मोहबन्ध के साथ वेदना का बन्ध, असंयत की देवगति, व्यन्तर देवों की स्थिति, ऋद्धि आदि । अनिच्छा से ब्रह्मचर्य पालन करने वाली स्त्रियों की व्यन्तर देवों में उत्पत्ति । अग्निहोत्री यावत् कंडूत्यागियों की ज्योतिषी देवों में उत्पत्ति, उनकी स्थिति, कान्दपिक यावत् नत्यरुचि श्रमणों की वैमानिकों में उत्पत्ति और उनकी स्थिति। परिव्राजकों की ब्रह्मदेवलोक में उत्पत्ति, सात ब्राह्मण परिव्राजकों के नाम, षट्शास्त्रों के नाम, सांख्य-शास्त्र व अन्य ग्रंथ, परिव्राजकों की संक्षिप्त आचार-संहिता आदि का परिचय भी इसमें प्राप्त होता है। अंबड परिव्राजक के ७०० शिष्य कपिलपूर से पुरिमताल नगर की ओर जा रहे थे। अटवी में रास्ता भूलने से भटक गये। सभी परिव्राजकों को प्यास सताने लगी, पानी देने वाले के अभाव में अदत्तादान की प्रतिज्ञा होने से पानी ग्रहण नहीं किया और गंगानदी की संतप्त बालू-रेत पर संलेखना-पादपोपगमन कर समाधिमरण प्राप्त किया। अंबड परिव्राजक की साधना, उसके द्वारा कंपिलपुर में वैक्रियल ब्धि का प्रदर्शन, अवधिज्ञान, आगारधर्म की आराधना, अंबड का दृढ़ सम्यक्त्व और अन्त में समाधिमरण के द्वारा ब्रह्मदेवलोक में उत्पत्ति । वहाँ से च्युत होकर महाविदेह में जन्म होगा। वहाँ दृढ़प्रतिज्ञ यह नाम होगा, कलाचार्य के समीप अध्ययन,
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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