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________________ २०२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा इसमें प्रकाश डाला गया है । वहाँ के राजमार्ग सुन्दर ही नहीं अतिसुन्दर थे जो हाथियों, घोड़ों, रथों और पालकियों के आवागमन से आकीर्ण रहते थे। उसके उत्तर-पूर्व में पुरातन और सुप्रसिद्ध पूर्णभद्र नामक एक चैत्य था जिसमें अनेक प्रकार के वृक्ष, पत्र, पुष्प, फल से लदे हुए थे और नाना पक्षी जिन पर क्रीड़ा किया करते थे। विविध लताओं से वे वृक्ष परिवेष्ठित थे। जहाँ पर रथ आदि वाहन खड़े किये जाते थे। चंपानगरी में भंभसार के पुत्र राजा कूणिक राज्य करते थे। वह कुलीन, राजलक्षणों से संपन्न, राज्याभिषिक्त, विपुल भवन-शयन-आसन-यानवाहन-कोष्ठ-कोष्ठागार के अधिपति थे। उनकी सर्वांगसुन्दर धारिणी रानी थी। एक बार भगवान महावीर अनेक श्रमणों के साथ वहाँ पधारे। वार्तानिवेदक से समाचार श्रवण कर कूणिक अत्यन्त प्रमुदित हुआ और प्रीतिदान देकर उसका सत्कार किया। भगवान महावीर के जो सन्त थे वे उग्र, भोग, राजन्य, ज्ञात और कौरव कुलों के क्षत्रिय, भट, योद्धा, सेनापति, श्रेष्ठि व इभ्य पुत्र थे। उनके मल, मूत्र, थूक और हस्तादिक के स्पर्श से रोगी पूर्ण स्वस्थ हो जाते थे। अनेक श्रमण मेधावी, प्रतिभासंपन्न, कुशलवक्ता और आकाशगामी विद्या में निष्णात थे । वे कनकावली, एकावली, क्षुद्रसिंहनिष्क्रीडित, महासिंहनिष्क्रीडित, भद्रप्रतिमा, महाभद्रप्रतिमा, सर्वतोभद्रप्रतिमा, आयंबिल, वर्धमान मासिक भिक्षुप्रतिमा, क्षुद्रमोकप्रतिमा, महामोकप्रतिमा, यवमध्यचन्द्रप्रतिमा और वज्रमध्यचन्द्रप्रतिमा आदि तपविशेष का आचरण करते थे। वे विद्यामंत्र में कुशल, पर-वादियों के मानमर्दन करने में पटु, द्वादशांगवेत्ता और विविध भाषाओं के ज्ञाता थे। बारह प्रकार के तप आदि में सदा निमग्न रहते थे। भगवान के आगमन का समाचार सुनकर राजा कूणिक ने चंपानगरी को पूर्णरूप से सजाने का आदेश दिया। तदनुसार संपूर्ण नगरी अलकापुरी के सदृश सजाई गई। राजा कूणिक भी स्नानादि कर बहुमूल्य वस्त्र व आभूषण धारण कर, हाथी पर सवार होकर चतुरंगिणी सेना सहित दर्शनार्थ पहुँचा। भगवान ने उपदेश दिया। गणधर गौतम ने भगवान से जीव और कर्मबन्ध विषयक प्रश्न किये। प्रस्तुत आगम में भगवान महावीर के संपूर्ण शरीर का शब्दचित्र भी प्रस्तुत किया गया है। भगवान महावीर के शरीर व अंगोपांग का सविस्तृत
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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