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________________ १. औपपातिकसूत्र नामकरण औपपातिकसूत्र जैन वाङ्गमय का प्रथम उपांग है। अंगों में जो स्थान आचारांग का है वही स्थान उपांगों में औपपातिक का है। इसके दो अध्याय हैं । प्रथम का नाम समवसरण है और द्वितीय का नाम उपपात । दूसरे अध्याय में उपपात संबंधी नाना प्रकार के प्रश्नों की चर्चा हई है अतः आचार्य अभयदेव ने वृत्ति में लिखा है कि उपपात जन्म, देव और नारकियों के जन्म या सिद्धिगमन का वर्णन होने से प्रस्तुत आगम का नाम औपपातिक है। विन्टरनित्ज ने औपपातिक के स्थान पर उपपादिक शब्द का प्रयोग किया है जो अर्थ की गंभीरता को पूरी तरह व्यंजित नहीं करता है। इसका प्रारंभिक अंश गद्यात्मक और अन्तिम अंश पद्यात्मक है। मध्यभाग में गद्यपद्य का सम्मिश्रण है किन्तु कुल मिलाकर इस सूत्र का अधिकांश भाग गद्यात्मक है। इसमें ४३ सूत्र हैं। इसमें एक ओर जहाँ राजनैतिक, सामाजिक तथा नागरिक तथ्यों की चर्चा हुई है तो दूसरी ओर धार्मिक, दार्शनिक एवं सांस्कृतिक तथ्य भी प्रतिपादित हए हैं। इस आगम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें जिन विषयों की चर्चा की गई है उनका पूर्ण विवेचन किया गया है। अन्य आगमों में, यहाँ तक कि अंगसूत्रों में भी इन्हीं वर्णनों का संदर्भमात्र दिया गया है। भगवान महावीर के आ-नख-शिख समस्त अंगोपांगों का इतना विशद वर्णन अन्य किसी भी आगम में नहीं है। भगवान की शरीर-सम्पत्ति को जानने के लिए यही एकमात्र आधारभूत आगम है। उनके समवसरण का सजीव चित्रण और भगवान की महत्त्वपूर्ण उपदेशविधि भी इसमें सुरक्षित है। चम्पानगरी चम्पा उस युग की एक प्रसिद्ध नगरी थी। वह धनधान्य आदि से समृद्ध और मनुष्यों से आकीर्ण थी। उस नगरी के संबंध में विस्तार से १ उपपतनं उपपातो-देवनारकजन्म सिद्धिगमनं च । अतस्तमधिकृत्य कृतमध्ययनमोपपातिकम् । -औप० अभयदेव वृत्ति
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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