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________________ ६. ज्ञाताधर्मकथा १३०-१३८ नामबोध १३०, प्रथम श्रुतस्कन्ध १३२, द्वितीय श्रुतस्कन्ध १३८, उपसंहार १३८ ७. उपासकवांग १३६-१६० नामकरण १३६, विषय-वस्तु १३६, आनन्द श्रावक १४०, बारह व्रत १४०, (१) स्थूल प्राणातिपातविरमण व्रत १४०, (२) स्थूल मृषावादविरमण व्रत १४२, (३) स्थूल अदत्तादानविरमण व्रत १४३, (४) स्वदारसंतोष व्रत १४४, (५) स्थूल परिग्रहपरिमाण व्रत १४५, (६) दिशापरिमाण व्रत १४६, (७) उपभोग-परिमोगपरिमाण प्रत १४६, (E) अनर्थदण्डविरमण व्रत १४८, (९) सामायिक व्रत १४६, (१०) देशावकाशिक व्रत १५०, (११) पौषधोपवास व्रत १५०, (१२) अतिथि संविभाग व्रत १५१, ग्यारह प्रतिमाएँ १५२, गणधर गौतम की क्षमायाचना १५४, संलेखना आत्महत्या नहीं १५६, कामदेव आदि अन्य श्रावक १५६, उपसंहार १५६ ८. अन्तकृद्दशासूत्र १६१-१६५ नामकरण १६१, विषय-वस्तु १६३, उपसंहार १६५ ६. अनुत्तरोपपातिक वशा नामकरण १६६, विषय-वस्तु १६६, धन्यकुमार का उग्र तप १६८, उपसंहार १६६ १०. प्रश्नध्याकरणसूत्र १७०-१६५ नामकरण १७०, विषय-वस्तु १७०, नवीन प्रश्नव्याकरण १७३, प्राचीन प्रश्नध्याकरण की रचना क्यों की? १७४, प्रस्तुत आगम का महत्त्व १७५, पंच आस्रवद्वार १७५, पंच संवरद्वार १७७, उपसंहार १८५ ११. विपाकसूत्र १९६-१९२ नामकरण १८६, विषय-वस्तु १८६, प्रथम श्रुतस्कन्ध : दुःख विपाक १८७, द्वितीय श्रुतस्कन्ध : सुखविपाक १६१, उपसंहार १६२ १२. दृष्टिबाद १९३-१९८ नामकरण १६३, दृष्टिवाद के नाम १६३, विषय-वस्तु १६४, दृष्टिवाद का महत्त्व १६६, उपसहार १६८ तृतीय खण्ड-अंगबाह्य आगम साहित्य १९६-४३२ उपांग आगम साहित्य २००-२७८ १. औपपातिकसूत्र २०१-२०५ नामकरण २०१, चम्पानगरी २०१, उपसंहार २०५
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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