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________________ १२. दृष्टिवाद वाद बारहवाँ अंग है, जिसमें संसार के सभी दर्शनों एवं नयों का निरूपण किया गया है ।' दूसरे शब्दों में कहें तो जिसमें सम्यक्त्व आदि दृष्टियों-- दर्शनों का विवेचन किया गया हो वह दृष्टिवाद है । " नामकरण दृष्टिवाद विलुप्त हो चुका है। वह वर्तमान में उपलब्ध नहीं है । भगवान महावीर के १७० वर्ष के पश्चात् श्रुतकेवली भद्रबाहु हुए। उनके स्वर्गगमन के पश्चात् दृष्टिवाद का शनैः-शनैः लोप होने लगा और वीर निर्वाण सम्बत् १००० में वह पूर्णरूप से लुप्त हो गया । अर्थात् देवद्धिगणी क्षमाश्रमण के स्वर्गगमन के बाद वह शब्द रूप से पूर्णतया नष्ट हो गया और अर्थरूप में कुछ अंश बचा रहा। efष्टवाद के नाम ठाणांग में दृष्टिवाद हेतुवाद, भूतवाद, तथ्यवाद, सम्यग्वाद, धर्मवाद, भाषाविचय या भाषाविजय, पूर्वगत, अनुयोगगत और सर्वप्राणभूतजीवसत्वसुखावह ये दश नाम दृष्टिवाद के प्राप्त होते हैं । " १ दृष्टयो दर्शनानि नया वा उच्यन्ते अभिधीयन्ते पतन्ति वा अवतरन्ति यत्रासो दृष्टिवादो, दृष्टिपातो वा । प्रवचन पुरुषस्य द्वादशेऽङ्गे । - स्थानांगवृत्ति, ठा० ४, उ०१ २ दृष्टिदर्शनं सम्यक्त्वादि, वदनं वादो, दृष्टीनां वादो दृष्टिवादः । —प्रवचनसारोद्धार, द्वार १४४ ३ गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे मारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए ममं एगं वासस हस्स पुण्यगए अणुसज्जिस्स...... -- भगवतीसूत्र, शतक २०, ४०८, सू० ६७७; सुत्तागमे पृ० ८०४ ४ दिठिवायस्स णं दस नामधिज्जा पण्णत्ता । तं जहा- दिठिवाएइ वा हेउवाएइ वा, भूयवाएइ वा, तच्चावाएइ वा सम्मावाएइ वा, धम्मावाएइ वा मासाविजएइ वा, पुब्बगएइ वा अणुओगगएइ वा, सव्वपाणभूयजीवसत्तसुहावहेइ वा । -स्थानांग सूत्र, ठा० १०, सूत्र ७४२; मुनिश्री कमल द्वारा सम्पादित
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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