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विषयवस्तु
जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
समवायांग व नन्दी में परिकर्म, सूत्र, पूर्वंगत, अनुयोग और चूलिका ये दृष्टिवाद के पाँच विभाग बताये हैं। इनके विभिन्न भेद-प्रभेदों का विव रण प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि प्रथम विभाग में लिपि विज्ञान और सर्वांग पूर्ण गणित विद्या का विवेचन था। द्वितीय विभाग में छिन्नछेदनय, अछिन्नछेदनय, त्रिकनय, चतुर्नय की परिपाटियों का विस्तार से विवेचन था । उसमें यह भी बताया गया था कि प्रथम और चतुर्थ ये दो परिपाटियाँ निग्रंथों की थीं और अछिन्नछेदनय एवं त्रिकनय की परिपाटियाँ आजीविकों की थीं। तृतीय विभाग में १४ पूर्वो की विस्तार से चर्चा विचारणा थी । प्रथम उत्पाद पूर्व में सम्पूर्ण द्रव्य और पर्यायों की प्ररूपणा उत्पाद की दृष्टि से की गई थी। इस पूर्व का पद परिमाण एक कोटि पद था। द्वितीय अग्रायणीयपूर्व में सभी द्रव्य पर्याय और जीवविशेष के अग्र-परिमाण का वर्णन था। इसका पद परिमाण ६६ लाख पद था । तृतीय वीर्यप्रवादपूर्व में सकर्म एवं निष्कर्म जीव और अजीव के वीर्य शक्ति विशेष का वर्णन था । इसकी पद संख्या ७० लाख थी । चतुर्थ अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व में वस्तुओं के अस्तित्व और नास्तित्व के वर्णन के साथ धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय प्रभृति द्रव्यों का अस्तित्व और आकाशपुष्प आदि के नास्तित्व का प्रतिपादन किया गया था और प्रत्येक द्रव्य के स्व-स्वरूप से अस्तित्व और पर-स्वरूप से नास्तित्व का भी प्रतिपादन था । इसका पदपरिमाण ६० लाख था । पंचम ज्ञानप्रवादपूर्व में मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल के भेद-प्रभेदों का विस्तार से विवेचन था। इसकी पदसंख्या १ करोड़ थी। छठे सत्यप्रवादपूर्व में सत्यवचन का विस्तार से वर्णन किया गया था । साथ ही उसके प्रतिपक्षी रूप पर भी विस्तार से प्रकाश डाला गया था । इसमें १ करोड़ और ६ पद थे। सातवें आत्मप्रवादपूर्व में आत्मा के स्वरूप व उसकी व्यापकता, ज्ञातृत्व और भोक्तृत्व सम्बन्धी विवेचन अनेक नयों की दृष्टि से किया गया था। इस पूर्व में २६ करोड़ पद
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से कि दिट्टिवाए ? से समासओ पंचविहे पण्णले तं जहा - परिकम्मे, सुत्ताई, पुम्बगए, अणुओगे, चूलिया । ( नम्बीसूत्र)
२ पढमं उप्पायपुव्थं तत्थ सव्वदव्वाणं पज्जवाण य उप्पाय मावमंगीकार पष्णवणा
कया ।
(नदी)