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१९० जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा करता था। प्रधानमंत्री सुषेण भी उस वेश्या पर अनुरक्त था । अतः सुषेण एक बार वेश्या के साथ उसे देखकर कुपित हआ। सुषेण की आज्ञा से पूर्वकृत कर्मों के कारण इन दोनों की यह स्थिति हुई है। इस प्रकार हिंसक वृत्ति व दुराचार के कारण यह अनेक जन्मों में दुःख पाएगा।
पांचवें अध्ययन में बृहस्पतिदत्त की कथा है । बृहस्पतिदत्त कोसाम्बी के सोमदत्त पुरोहित का पुत्र था। वह पूर्वभव में महेश्वरदत्त नाम का पुरोहित था, जो राजा की बलवृद्धि हेतु ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के बालकों को मारकर नरमेध यज्ञ करता था। जिससे वह मरकर पांचवीं नरक में गया और वहां से निकलकर यह बृहस्पति हुआ। राजकुमार का इस पर स्नेह था अतः राजा की मृत्यु के पश्चात् यह राज पुरोहित बना। राजा की रानी पर यह अनुरक्त हो गया जिससे राजा ने उसे मृत्युदंड दिया। इस प्रकार पूर्वकृत पाप के कारण यह अनेक जन्मों तक दुःख पाएगा।
छठे अध्ययन में नंदीवर्धन की कथा है। वह श्रीदाम राजा का पुत्र था। पूर्वभव में वह किसी राजा के यहाँ पर कोतवाल था । वह अपराधियों को अत्यधिक कर दंड देकर आनंद का अनुभव करता था। वहाँ से मरकर वह छठी नरक में गया और नरक से निकल कर राजा का पुत्र नन्दीवर्धन हुआ। नन्दीवर्धन ने अपने पिता को मारकर राज्य लेना चाहा और इस षडयंत्र में उसने नाई का सहयोग लिया । समय के पूर्व ही रहस्य खुल जाने से राजा ने क द्ध होकर नन्दीवर्धन को प्राणदंड की सजा दी। पूर्वकृत कर्मों के कारण अनेक जन्मों तक इसे दुःख भोगना पड़ेगा। अतः अपराधी को भी चित्त की कठोरता से दंड नहीं देना चाहिये।
सातवें अध्ययन में उम्बरदत्त की कथा है। वह सागरदत्त सार्थवाह का पुत्र था। पूर्वभव में वह एक कुशल वैद्य था। आयुर्वेद चिकित्सा में निष्णात था । वह रुग्ण व्यक्तियों को मद्य, मांस, मत्स्य भक्षण का उपदेश देता था जिसके फलस्वरूप वह छठी नरक में पैदा हुआ और वहाँ से मरकर यहाँ उम्बरदत्त के नाम से उत्पन्न हुआ है। दुराचार के सेवन से और पूर्वकृत कर्मों से इसके शरीर में सोलह महारोग पैदा हुए। यह यहाँ से मरकर अनेक जन्मों तक दुःख पायेगा।
आठवें अध्ययन में शौर्यदत्त की कथा है । शौर्यदत्त समुद्रदत्त नाम के एक धीवर का पुत्र था। वह पूर्वभव में किसी राजा के यहाँ रसोइया था।