________________
१८८ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
में एक जन्मांध भिखारी था। गणधर गौतम ने उस भिखारी को देखकर, भगवान महावीर से प्रश्न किया, 'भगवन् क्या किसी स्त्री के कोई बच्चा जन्म से ही अंधा होता है ?" भगवान ने मृगापुत्र की बात बताते हुए कहावह अंधा ही नहीं, बहरा, लूला और लंगड़ा भी है। उसके हाथ-पैर उपांगादि आकारमात्र प्रगट नहीं हैं। भगवान की आज्ञा से गौतम उसे देखने के लिए पहुँचे। उसके शरीर में से मृत साँप की सी दुर्गंध आ रही थी। वह आहार ग्रहण करता जो रक्त और मवाद बनकर बाहर निकलता और वह पुनः उसे खा जाता था। उसे देखते ही गौतम को नारकीय दृश्य स्मरण हो आये। भगवान ने उसके पूर्वभव का वर्णन करते हुए कहा कि उस जीव ने पूर्वभव में अत्यधिक पापकृत्य किये जिसके फलस्वरूप उसे उस जन्म में भी सोलह महारोग हुए और वहाँ से वह मरकर प्रथम नरक में पैदा हुआ। नरक से निकल कर यह मृगापुत्र हुआ है और यहाँ पर पूर्वकृत पाप का फल भोग रहा है। इसके बाद भी अनेक जन्मों तक इसे पाप का फल भोगना पड़ेगा ।
द्वितीय अध्ययन में गोमांस भक्षण एवं मद्यपान तथा विषयासक्ति के दुःखद फलों को बताते हुए उज्झितकुमार का परिचय दिया है। उज्झित वाणिज्यग्राम के विजयमित्र सार्थवाह का पुत्र था। गौतम गणधर वाणिज्यग्राम में भिक्षा हेतु पधारे। वहाँ उन्होंने अत्यधिक कोलाहल सुना। उन्हें ज्ञात हुआ कि राजपुरुष किसी को बाँधकर मारते-पीटते हुए ले जा रहे हैं। गौतम ने भगवान महावीर से प्रश्न किया कि इसको इतना कष्ट क्यों दिया जा रहा है ? भगवान महावीर ने जिज्ञासा का समाधान करते हुए कहा कि हस्तिनापुर में भीम नाम का एक कूटग्राह अर्थात् पशुओं का तस्कर रहता था। उसकी पत्नी का नाम उत्पला था । जब वह गर्भवती हुई तब उसे गाय, बैल आदि के मांस खाने की इच्छा जागृत हुई। उसने उसकी पूर्ति की । गायों को त्रास नाम गोत्रास रखा । वही गोत्रास जीवनभर करता रहा। वहाँ से मरकर वाणिज्यग्राम में विजयमित्र के यहाँ उज्झित नाम का पुत्र हुआ। जब यह बढ़ा हुआ तो इसके माता-पिता का देहान्त हो गया। नगर रक्षक ने उसे घर से निकाल दिया और वह कुसंगति में पड़ने से द्यूतगृह, वेश्यागृह, मद्यगृह आदि में परिभ्रमण करने लगा। उसी नगर में जो कामध्वजा वेश्या रहती है उसमें यह आसक्त हो गया। वह
देने के कारण उस पुत्र का गो-मांस आदि का उपयोग