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अंग साहित्य : एक पर्यालोचन
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मृगापुत्र, गोत्रास, अंड शकट, माहन, नंदीषेण, शौरिक, उदुम्बर, सहसोद्दाह, आमरक और कुमार लिच्छवी ये दश अध्ययन बताये हैं।'
ये नाम किसी दूसरी वाचना के प्रतीत होते हैं । वर्तमान में उपलब्ध दुःखविपाक में दश अध्ययनों के ये नाम मिलते हैं-मृगापुत्र, उज्झितक, अभग्नसेन (अभग्गसेन), शकटकुमार, बृहस्पतिदत्त, नंदीवर्धन, उदंबरदत्त, शौर्यदत्त, देवदत्ता, अंजुश्री। पं० बेचरदास दोशी ने स्थानांग में आये हुए नामों के साथ वर्तमान में उपलब्ध नामों का समन्वय किया है। वह इस प्रकार है।
गोत्रास उज्झितक के अन्य भव का नाम है। अण्ड नाम अभग्नसेन ने पूर्वभव में जो अण्डे का व्यापार किया था उसका सूचक होना चाहिए। ब्राह्मण (माहन) नाम का सम्बन्ध बृहस्पतिदत्त पुरोहित से हो सकता है। नन्दीषेण का नाम नन्दीवर्धन के नाम पर प्रयुक्त हुआ है। सहसोद्दाह आमरक का सम्बन्ध राजा की माता को तप्तशलाका से मारने वाली देवदत्ता के साथ मिलता है । कुमार लिच्छवी के स्थान पर अंजुश्री नाम आया है, अंजु का जीव अपने अन्तिम भव में किसी सेठ के यहाँ पर पुत्ररूप में उत्पन्न होगा। इस कारण से सम्भव है कुमार-लिच्छवी नाम दिया गया हो । लिच्छवी का सम्बन्ध लिच्छवी वंश विशेष से है।
सुखविपाक आगम में दश अध्ययनों के नाम इस प्रकार हैं-सुबाहुकुमार, भद्रनन्दी, सुजातकुमार, सुवासवकुमार, जिनदासकुमार (वैश्रमणकुमार), धनपति, महाबलकुमार, भद्रनन्दीकुमार, महाचन्द्रकुमार और वरदत्तकुमार | नन्दी और स्थानाङ्ग में सूख विपाक के अध्ययनों के नाम नहीं गिनाए हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध : दुःखविपाक
प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन में मृगापुत्र का वर्णन है। वह मृगावती का पुत्र था। यह जन्म से अंधा, बहरा, लूला, लंगड़ा, गूंगा और बात, पित्त, कफादि रोगों से पीड़ित था। उसे कोई न देख ले अतः रानी मृगावती ने उसका पालन-पोषण तहखाने (भोयरे) में किया। उस नगरी
१ ठाणांग १०११११ २ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भा० १, पृ० २६३, प्रकाशक-पाश्र्वनाथ विद्याश्रम
शोध संस्थान, वाराणसी।