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अंग साहित्य : एक पर्यालोचन
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प्रस्तुत आगम का महत्त्व
प्रश्नव्याकरणसूत्र का आगम साहित्य में एक विशिष्ट और महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसमें प्रश्नों का समाधान है। तन के नहीं किन्तु मन के प्रश्नों का समाधान है। तन के रोगों से भी मन के रोग अधिक भयंकर होते हैं। तन के रोग एक जन्म में ही पीड़ा देते हैं किन्तु मन के रोग जन्म-जन्मान्तरों तक उसके पीछे लगे रहते हैं। उन रोगों की सही चिकित्सा का वर्णन प्रस्तुत आगम में है। प्रथम खण्ड में उन रोगों के नाम बताये हैं--- हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्मचर्य, परिग्रह । और उन रोगों की चिकित्सा दूसरे खण्ड में बताई है-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । पञ्च आस्रवद्वार
प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम अधर्म द्वार के प्रथम अध्ययन में हिंसा का वर्णन किया गया है। हिंसा पापरूप, अनार्य कर्म और नरकगति में ले जाने वाली है । असंयमी, अविरत मन, वाणी और कार्य को अशुभयोग में प्रवृत्ति करने वाले जीव पशु-पक्षियों की हिंसा करते हैं । स जीवों की हिंसा के विविध कारणों में से मुख्य कारण हैं-अस्थि, मांस, चर्म और प्राणियों के अंगोपांग आदि, जिनका उपयोग मानव अपने शरीर की शोभा को बढ़ाने के लिए या अपने भव्य भवन को सजाने के लिए करता है। पृथ्वीकाय की हिंसा कृषि, कूप, बावड़ी, चैत्य, स्मारक, स्तूप, भवन, मंदिर, मूर्ति प्रभृति वस्तुओं के लिए की जाती है। कषाय के वशीभूत होकर मंदबुद्धि वाले धर्म, अर्थ और काम की दृष्टि से सप्रयोजन या निष्प्रयोजन हिंसा करते हैं। हिंसा चाहे स्थानक, चैत्य, मन्दिर, मठ, यज्ञादि कार्यों के लिए की जाय वह हिंसाहिंसा ही है। धर्म के लिए की जाने वाली हिंसा कभी भी अहिंसा नहीं हो सकती। वह तो अर्थ और काम के निमित्त की जाने वाली हिंसा की तरह अधर्म ही है। प्राणवध आदि हिंसा के ३० नाम बताये हैं।
द्वितीय अध्ययन में असत्य को भयंकर अविश्वासकारक बताते हुए उसके ३० नाम बताये हैं । धार्मिक दृष्टि से ही असत्य त्याज्य है ऐसी बात नहीं किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से भी असत्य को महापाप गिना है। असत्य बोलने वालों का संसार में कोई विश्वास नहीं करता। वह मोक्षरूपी कल्पवृक्ष को काटनेवाली कुल्हाड़ी है। जिन वचनों को बोलने से जन-जन के अन्तर्मानस में पीड़ा पहुँचती है वह असत्य है। कषायवश प्राणियों को