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अंग साहित्य : एक पर्यालोचन १७३ अभिमतानुसार प्रस्तुत आगम में आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेदनी और निवेदनी इन चार कथाओं तथा प्रश्न के आधार पर नष्ट, मुष्टि, चिंता, लाभ, अलाभ, सुख-दु:ख, जीवन और मरण का वर्णन है ।' उक्त ग्रन्थों में प्रश्नव्याकरण का जो विषय वणित किया गया है वह आज के प्रश्न-व्याकरण में उपलब्ध नहीं है। प्राचीन प्रश्नव्याकरण कब लुप्त हुआ इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि आचार्य देवधिगणी क्षमाश्रमण के समय वह विद्यमान था। यदि उनके समक्ष विद्यमान न होता तो वे उसका उल्लेख कैसे करते ? नंदी सूत्र की चूणि में सर्वप्रथम आचार्य जिनदासगणी महत्तर ने वर्तमान में उपलब्ध प्रश्नव्याकरण के विषय से सम्बन्धित पाँच संवर आदि का उल्लेख किया है। पर मूलनन्दी में उसका उल्लेख नहीं है। नवीन प्रश्नव्याकरण
प्राचीन प्रश्नव्याकरण में ज्योतिष, मन्त्र, तन्त्र, विद्यातिशय आदि विषयों का परिवर्तन करके नवीन विषयों का संकलन इसलिए किया गया है कि वर्तमान समय का कोई अनधिकारी व्यक्ति सूत्र में प्रतिपादित चामत्कारिक विद्याओं का दुरुपयोग न करे। अत: उत्तरकाल के गीतार्थ स्थविर भगवंतों ने इस प्रकार की सभी विद्याएँ प्रश्नव्याकरणसूत्र में से निकाल दी और उसके स्थान पर केवल आस्रव और संवर का समावेश कर दिया । प्रस्तुत कथन का समर्थन आचार्य अभयदेव और आचार्य ज्ञानविमल ने भी किया है।
१ पण्हवायरणं णाम अंगं अक्खेवणी-विक्खेवणी-संवेयणी-णिग्वेयणीणामाओ चउब्विहं
कहाओ पण्हादो गट्ठ-मुट्ठि-चिता-लाहालाह-सुखदुक्ख-जीवियमरणाणि च बण्णेदि।
-सायपाहुड, भाग १, पृ०१३१, १३२ २ पण्हावागरणे अंगे पंचसंवरादिका व्याख्येया, परप्पवादिणो य अंगुठ-बाहुपसिणादियाणं पसिणाणं अठ्ठतरं सतं ।
-नन्बोचूणि ३ प्रश्नाना--विद्याविशेषाणां यानि व्याकरणानि तेषां प्रतिपादनपरा दशादशध्ययन
प्रतिबद्धाः ग्रन्थपद्धतय इति प्रश्नव्याकरणदशाः अयं च व्युत्पत्त्यर्थोऽस्य पूर्वकालेऽभूत् । इदानी स्वास्रवपञ्चक संवरपञ्चकव्याकृतेरेवेहोपलभ्यते,, अतिशयानां पूर्वाचार्यरैदंयुगीनानामपुष्टालम्बन प्रतिषेवि पुरुषापेक्षयोत्तारितत्वादिति ।
-प्रश्नव्याकरणवृत्ति, प्रारम्भ ४ प्रश्ना: अंगुष्ठादि प्रश्नविद्यास्ता व्याक्रियन्ते अभिधीयन्ते अस्मिन्निति प्रश्न
व्याकरणम् एतादृशं अंगं पूर्वकालेऽभूत् । इदानीं तु आस्रव-संवरपञ्चकव्याकृतिरेव