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________________ वर्तमान में जो प्रश्नव्याकरण है उसमें स्थानांग में वर्णित दश अध्ययनों में से एक भी अध्ययन नहीं है । नन्दी आदि आगमों में जहाँ प्रश्नव्याकरण की चर्चा की गई है वहाँ पर अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न आदि का तो वर्णन है पर स्थानांग में बताये हुए उपमा, संख्या, ऋषिभाषित आदि का वर्णन नहीं है ।" समवायांग में प्रत्येकबुद्धभाषित, आचार्यभाषित और महावीरभाषित का अतिसंक्षेप में उल्लेख अवश्य हुआ है किन्तु वह विषय के रूप में उल्लेख है; स्वतंत्र अध्ययन के रूप में नहीं है। इसमें उद्देसण काल ४५ बतलाये गये हैं तथापि अध्ययनों की संख्या का स्पष्ट निर्णय नहीं किया जा सकता। गंभीर विषय वाले अध्ययनों की शिक्षा अनेक दिनों तक भी हो सकती है । १७२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा किया है । किन्तु स्थानांग से उसकी संगति नहीं बैठती है । स्थानांग में प्रश्नव्याकरण के उपमा, संख्या, ऋषिभाषित, आचार्यभाषित महावीरभाषित, क्षोमकप्रश्न, कोमलप्रश्न, अद्दागप्रश्न, अंगुष्ठप्रश्न और बाहुप्रश्न ये दश अध्ययन हैं । समवायांग में स्पष्ट रूप से अध्ययनों का उल्लेख नहीं है पर उसके 'पण्हावागरणदसासु' इस आलापक के वर्णन से यह सहज ही निष्कर्ष निकल सकता है कि समवायांग में प्रस्तुत आगम के दश अध्ययनों की परम्परा स्वीकृत है । तस्वार्थ राजवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत आगम में अनेक आक्षेपों और विक्षेपों के द्वारा हेतु और नय से आश्रित प्रश्नों का उत्तर दिया गया है। लौकिक और वैदिक अर्थों का निर्णय किया गया है।" जयधवला के १ संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्सीओ। - नम्वीसूत्र २ पण्हावागरणदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - उबमा, संखा, इसिमासियाई, आयरियमासियाई, महावीरमासियाई, खोमगपसिणाई, कोमलपसिणाई, अद्दागपसिनाई, अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिणाई । --- समवायांग, सूत्र १४५ प्रश्नव्याकरणदशा इहोक्तरूपा न दृश्यमाना तु पञ्चास्रव पञ्चसंवरात्मिका । -- स्थानांग अभयदेवीया वृत्ति, १० स्थान पर समयपण्णव पत्तेयबुद्ध विविहत्यभासामासियाणं अइसयगुण उवसमणाणप्पगार आयरियभासियाणं वित्थरेणं वीरमहेसीहिं विविवित्थरभासियाणं । - समवायांग सूत्र १४५ व्याकरणं प्रश्नव्याकरणम् । तस्मिंल्लोतस्वार्थवार्तिक १।२० पृ० ७३-७४ स-समय ५ आक्षेप विक्षेपहॅतुनयाश्रितानां प्रश्नानां किक वैदिकानामर्थानां निर्णयः । ३ ४
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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