________________
अंग साहित्य : एक पर्यालोचन १७१ सम्बन्धित है। नंदी, समवायांग,२ नंदीचूणि, नंदी मलय गिरिवत्ति, समवायांगवृत्ति' एवं स्थानांगवृत्ति के अनुसार विचित्र विद्यातिशय अर्थात चामत्कारिक प्रश्नों का व्याकरण जिस सूत्र में वर्णित है वह प्रश्नव्याकरण है। किन्तु यह स्मरण रखना चाहिए कि वर्तमान में जो प्रश्नव्याकरणसूत्र उपलब्ध है उसमें इस प्रकार की कोई भी चर्चा नहीं है। अतः यहाँ प्रश्नव्याकरण का सामान्य अर्थ जिज्ञासाएं हैं। जिस सूत्र में अहिंसा-हिंसा, सत्य और असत्य आदि धर्म-अधर्म रूप विषयों की चर्चा है वह प्रश्नव्याकरण है। जो प्राचीन प्रश्नव्याकरणसूत्र था वह एक विराट्काय आगम था। नंदीचूर्णि' व समवायांगवत्ति के अनुसार इसमें १२१६००० पद थे। धवला' में उसके पदों की संख्या १३१६००० मानी गई है। वर्तमान में उपलब्ध प्रश्नव्याकरणकी श्लोक संख्या १२५६ के लगभग है।११ समवायांग१२ व नन्दी13 में ४५ अध्ययन बताये हैं। साथ ही उसमें अनेक संख्यक श्लोकों और नियुक्तियों आदि का भी उल्लेख
१ नन्दी, श्रुतज्ञान प्रकरण, सूत्र १३ २ समवायांग प्रकीर्णक १४५ ३ जागा सुवण्णा अण्णे य भवणवासिणो ते विज्जामंतागरिसित्ता आगता साधुणा सह संवदंति-जल्पं करेंति।
-नबीचूणि ४ या पुनविद्या मंत्रा वा विधिना जप्यमानाः पृष्टा एवं शुभाशुभं कथयन्ति......
-नन्दीसूत्र मलयगिरिवृत्ति ५ अभ्ये विद्यातिशया स्तम्भ-स्तोम-वशीकरण-विद्वेषीकरणोच्चाटनादयः ।
-समवायांगवृत्ति ६ प्रश्नविद्या यकामिः क्षोमकादिषु देवतावतारः क्रियते।
-स्थानांग, अभयवेवीयावृत्ति, १० स्थान ७ प्रश्न: प्रतीतः तद्विषयं निर्वचनं व्याकरणम्
-नन्दीसूत्र-मलयगिरि ८ पदग्यं दोणउतिलक्खा सोलस य सहस्सा।
-लम्बीचूर्णि द्विनवतिलक्षणाणि षोडश च सहस्राणि ।
-समवायांगवृत्ति १० पण्हवायरणं णाम अंग तेणउदिलक्ख-सोलस सहस्सपदेहि ।
---धवला, भाग १, पृ० १०४ ११ (क) प्रश्नव्याकरणसूत्र--सन्मति ज्ञानपीठ आगरा, प्रस्ता०, पृ० १४ । (ख) जैनधर्म का मौलिक इतिहास, भाग २, पृ०१५८ में १३०० श्लोक
लिखा है। १२ “पणयालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्देसणकाला। -समवायांगसूत्र १४५ १३ पणयालीसं अज्झयणा ।।
-नबीसूत्र ६६