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________________ १०. प्रश्नव्याकरणसूत्र नामकरण प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का दसवाँ अंग है। समवायांग',नन्दी और अनुयोगद्वार में प्रश्नव्याकरण के लिए 'पण्हावागरणाई के रूप में बहुवचन का प्रयोग मिलता है जिसका संस्कृत रूप 'प्रश्नव्याकरणानि' है। किन्तु इस समय जो प्रश्नव्याकरणसूत्र प्राप्त है उसमें 'पण्हावागरणे के रूप में एकवचन का प्रयोग हुआ है। तत्त्वार्थ स्वोपज्ञभाष्य, धवला व राजवातिक आदि ग्रन्थों में पण्णवागरणं या प्रश्नव्याकरण एक वचनान्त रूप ही मिलता है। स्थानांग में 'पण्हावागरणदसा--प्रश्नव्याकरणदशा मिलता है। किन्तु यह नाम अधिक प्रचलित नहीं हो सका। विषय-वस्तु प्रश्नव्याकरण का अर्थ प्रश्नों का व्याकरण अर्थात् निर्वचन, उत्तर एवं निर्णय" है । यहाँ पर प्रश्न शब्द का जो उपयोग हुआ है वह सामान्य प्रश्न के अर्थ में नहीं है। प्राचीन युग में विलुप्त प्रश्नव्याकरण जिसमें दर्पणप्रश्न, अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न, खड्गप्रश्न, आदि से सम्बन्धित विषय चर्चा थी जिसका सूचन नंदी आदि आगमों में उपलब्ध है। तदनुसार प्रश्न शब्द, मंत्रविद्या, निमित्तविद्या प्रभृति विषय विशेष से १ समवायांग प्रकीर्णसमवाय, सूत्र ६८ २ नन्दी, सूत्र ६० ३ अनुयोगद्वार, सूत्र ५० ४ तत्त्वार्थभाष्य १२० ५ पण्णवायरणं णाम अंग -कसायपाहुङ भा०१, पृ०१३४ . ६ प्रश्नव्याकरणं -तत्त्वार्यवार्तिक २२० ७ (क) पण्हो त्ति पुच्छा, पडिवयणं वागरणं प्रत्युत्तरमित्यर्थः -नबीचूणि (ख) प्रश्नः प्रतीतस्तन्निर्वचनं व्याकरणं, बहुत्वाद् बहुवचनम् ....... -आचार्य हरिभा--मन्दीवृत्ति
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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