SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अंग साहित्य : एक पर्यालोचन १६६ और महानिर्जरा कारक है। धन्य अनगार नव मास की स्वल्पावधि में उत्कृष्ट साधना कर अन्त में संलेखनापूर्वक एक मास तक अनशन कर सर्वार्थसिद्ध विमान में देव रूप से उत्पन्न हुए। उपसंहार इस प्रकार 'अनुत्तरोपपातिकदशा' में भगवान महावीरकालीन उग्र तपस्वियों का वर्णन हुआ है। ये सभी तपस्वी तपस्या करके अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए। इन तपस्वियों के जीवन-प्रसंगों पर प्रकाश डाला गया है। इससे महावीरकालीन सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों पर भी प्रकाश पड़ा है। - इस दृष्टि से भी यह अंग महत्त्वपूर्ण है। १ एवं खलु सेणिया ! इमासि इंदभूइ-पाभोक्खाणं चोदसण्हं समणसाहस्सीणं धणे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरयराए चेव । -अनुसरोपपातिक, वर्ग ३,०१, सूत्र ३३
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy