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________________ १६८ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा , द्वितीय वर्ग में दीर्घसेन, महासेन, लष्टदन्त, गूढदन्त, शुद्ध दन्त, हल्ल, द्रुम, द्रुमसेन, महाद्रुमसेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन और पुष्पसेन इन १३ राजकुमारों के जीवन पर संक्षेप में प्रकाश डाला गया है। ये अपनी तपः साधना से अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुए। वहाँ से च्यूत होकर मानव जन्म प्राप्त करेंगे और सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होंगे। तृतीय वर्ग में धन्यकुमार, सुनक्षत्रकुमार, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र, चन्द्रिक, पृष्टिमात्रिक, पेढालपुत्र, पोट्टिल्ल और बेहल्ल इन दश कुमारों के भोगमय व त्यागमय जीवन का सुन्दर चित्र चित्रित किया गया है। इसमें धन्यकुमार का वर्णन इस प्रकार से उट्टंकित है। धन्यकुमार का उग्र तप धन्यकुमार काकंदी की भद्रा सार्थवाही के पुत्र थे। उनके पास वभव अठखेलियां कर रहा था और सांसारिक सुखों की कमी नहीं थी। एक दिन श्रमण भगवान महावीर के त्याग-वैराग्य से छलछलाते हुए पावन प्रवचनों को सुनकर वे संयम के कठोर कंटकाकीर्ण महामार्ग पर एक वीर सेनानी की भांति बढ़ते हैं। उन्होंने जिस तपोमय जीवन का प्रारम्भ किया वह अद्भुत था। उनके समान तप जैन साहित्य में तो क्या किसी भी भारतीय साहित्य में दृष्टिगोचर नहीं होता। कविकुलगुरु कालिदास ने कुमारसंभव में पार्वती के उग्र तप का वर्णन किया है, पर यह साधिकार कहा जा सकता है कि वह धन्य मुनि के तप के समान नहीं था। उन्होंने अनगार बनते ही जीवन भर के लिए छठ-छठ तप से पारणा करने की प्रतिज्ञा की। पारणे में वे आचाम्ल व्रत करते थे और रुक्ष भोजन। कोई ग्रहस्थ बाहर फेंकने के लिए प्रस्तुत होता उस अन्न को इक्कीस बार पानी से धोकर ग्रहण करते और उसी पानी का उपयोग भी करते। तप से उनका शरीर केवल अस्थिपंजर हो गया। एक बार भगवान महावीर से सम्राट श्रेणिक ने जिज्ञासा प्रस्तुत कीभगवन् ! चौदह हजार श्रमणों में कौन अनगार महादुष्कर कारक और महानिर्जरा कारक है ? भगवान ने कहा-धन्य अनगार महादुष्कर कारक १ मज्झिमनिकाय के महासिंहनादसुत्त में तथागत बुद्ध ने अपने पूर्व जीवन में इसी प्रकार के उग्र तप का वर्णन किया है। देखिए-बोधिराजकुमारसुत्त दीघनिकाय कस्सपसिंहनावसुत्त
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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