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________________ अग साहित्य : एक पर्यालोचन १६७ ऋषिदास, वान्य, सुनक्षत्र, कार्तिक, नन्द, नन्दन, शालिभद्र, अभय, वारिषेण, चिलातपुत्र। अंगपण्णत्ती में उनके नाम इस प्रकार हैं-ऋषिदास, शालिभद्र, सुनक्षत्र, अभय, धन्य, वारिषेण, नन्दन, नन्द, चिलातपुत्र, कार्तिक । धवला में कार्तिक के स्थान पर कातिकेय और नन्द के स्थान पर आनन्द ये नाम प्राप्त होते हैं। वर्तमान में अनुत्तरोपपातिकदशा का जो स्वरूप उपलब्ध है वह स्थानांग व समवायांग की वाचना से पृथक् है। आचार्य अभयदेव ने स्थानांगवृत्ति में इसे वाचनान्तर कहा है। अनुत्तरोपपातिकदशा में एक श्रुतस्कन्ध, तीन वर्ग, तीन उद्देशन काल, तीन समुद्देशनकाल, परिमित वाचनाएँ, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात विशेष प्रकार का वेढा नामक छन्द, संख्यात श्लोक नामक छन्द, संख्यात नियुक्तियाँ, संख्यात प्रतिपत्तियाँ, संख्यात हजार पद हैं। वर्तमान में प्रस्तुत आगम ३ वर्गों में विभक्त हैं जिनमें क्रमशः १०, १३, और १० अध्ययन हैं । इस प्रकार ३३ अध्ययनों में ३३ महान् आत्माओं का संक्षेप में वर्णन किया गया है। जिनमें २३ राजकुमार तो सम्राट श्रेणिक के पुत्र हैं। विषय-वस्तु . प्रथम वर्ग में जालि, मयालि, उपजालि, पुरुषसेन, वारिसेन, दीर्घदन्त, लष्टदन्त, विहल्ल, वेहायस और अभयकुमार इन दश राजकुमारों का, उनका जन्म, नगर, माता-पिता आदि का परिचय दिया गया है । वे भगवान महावीर के पास संयम स्वीकार कर और उत्कृष्ट तप की आराधना कर अनुत्तरविमान में देव हुए और वहां से च्युत होकर मानव शरीर धारण कर मुक्त होंगे। १ ....."उजुदासो सालिभद्दक्खो। सुणक्खत्तो अमयो वि य धष्णो वरवारिसेणणंदणया । गंदो चिलायपुत्तो कत्तइयो जह तह अण्णे । -अंगपण्णत्ती ५५ २ षट्खंडागम, १२१२२ ३ तदेवमिहापि वाचनान्तरापेक्षयाध्ययनविभाग उक्तो न पुनरुपलभ्यमान वाचनापेक्षयेति । .. -स्थानांगवृत्ति, पत्र ४५३
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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