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________________ ९. अनुत्तरोपपातिकदशा प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का नवा अंग है। इसमें ऐसे साधकों का वर्णन है जिन्होंने अनुत्तर विमानों में जन्म लिया और फिर मनुष्य जन्म पाकर मोक्ष प्राप्त करेंगे। इसमें दश अध्ययन हैं अतः इसका नाम अनुत्तरोपपातिकदशा है । नन्दीसूत्र में केवल तीन वर्गों का उल्लेख प्राप्त होता है।' स्थानांग में केवल दश अध्ययनों का वर्णन है। तत्त्वार्थराजवार्तिक के अभिमतानुसार प्रस्तुत आगम में प्रत्येक तीर्थकर के समय में होने वाले १०-१० अनुत्तरोपपातिक श्रमणों का वर्णन है। कषायपाहड में भी इसी का समर्थन हआ है । समवायांग में दश अध्ययन और तीन वर्ग दोनों का सूचन किया गया है किन्तु उसमें दश अध्ययनों के नामों का निर्देश नहीं है। स्थानांग के अनुसार उनके नाम इस प्रकार हैं-ऋषिदास, धन्य, सुनक्षत्र, कार्तिक, स्वस्थान, शालिभद्र, आनन्द, तेतलि, दशार्णभद्र और अतिमुक्त। तत्त्वार्थ राजवातिक के अनुसार उनके नाम इस प्रकार हैं--- १ तिषिण बग्गा.. -नन्दीसूत्र ८९ २. ठाणं १०१११४ इत्येते दश वर्धमान तीर्थकरतीर्थे । एवमृषभादीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थेष्वन्येऽन्ये च दश दशानगारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निजित्य विजयाद्यनुत्तरेषूत्पन्ना इत्येवमनुत्तरोपपादिकः दशास्यां वर्ण्यन्त इत्यनुत्तरोपपादिकदशा। -तस्वार्थवार्तिक १२०, पृ०७३ ४ अणुत्तरौववादियदसा णाम अंगं चउब्विहोवसग्गे दारुणेसहियण चउबीसण्हं तित्थयराणं तित्थेसु अणुत्तरविमाणं गदे दस दस मुणिवसहे वण्णेदि । -कसायपाहुड, भा०१, पृ०१३० ........."दस अज्झयणा तिष्णि वग्गा "....1 समवाओ, पइण्णम समवाओ, ६७ ॥ ६ ठाणं १०१११४ ७ तत्त्वार्थराजवार्तिक श२०, पृ०७३।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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