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१६२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा भद्र ने नंदीवृत्ति में लिखा है कि प्रथम वर्ग के दश अध्ययन होने से प्रस्तुत आगम का नाम अंतगडदसाओ है। चूणि में दशा का अर्थ अवस्था भी किया है। समवायांग में दश अध्ययनों का निर्देश है किन्तु उनके नाम का निर्देश नहीं है। ठाणांग में दश अध्ययनों के नाम बताये हैं। जैसे नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, जमालि, भगाली, किंकष, चिल्वक्क और फाल अंबडपुत्र ।
तत्त्वार्थसूत्र के राजवातिक में एवं अंगपण्णत्ती में कुछ पाठभेद के साथ दश नाम प्राप्त होते हैं। जैसे नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, यमलोक, वलीक, कंबल, पाल और अंबष्ठपुत्र । उसमें लिखा है कि प्रस्तुत आगम में प्रत्येक तीर्थंकरों के समय में होने वाले दश-दश अन्तकृत् केवलियों का वर्णन है।
जयधवला में भी इस बात का समर्थन किया है । नंदीसूत्र में न तो दश अध्ययनों का उल्लेख है और न उनके नामों का ही निर्देश है । समवायांग और तत्त्वार्थवार्तिक में जिन नामों का निर्देश हुआ है वह वर्तमान अन्तकृशांग में नहीं है । नंदीसूत्र में वर्तमान में उपलब्ध प्रस्तुत आगम के स्वरूप का वर्णन है। इस समय अन्तकृत्दशांग में आठ वर्ग हैं और प्रथम वर्ग के दश अध्ययन हैं। किन्तु इनके नाम स्थानांग, राजवातिक व अंगपण्णत्ती से पृथक् हैं । जैसे गौतम, समुद्र, सागर, गंभीर, स्तिमित, अचल, कांपिल्य,
१ प्रथमवर्गे दशाध्ययनानि इति तत्संख्यया अन्तकृद्दशा इति ।
-नंदीसूत्र वृत्तिसहित, पृ० ८३ २ दस त्ति-अवत्था ।
- नंदीसूत्र, पूणिसहित, पृ०६८ ३ ठाणं, १०१११३ ४ तत्त्वार्थवार्तिक, ११२०, पृ०७३ । ५ (क) .......इत्येते दश वर्धमान तीर्थकर तीर्थे । एवमृषमादीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थेष्व
न्येऽन्ये च दश दशानगारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निजित्य कृत्स्न कर्म क्षयादन्तकृतः दश अस्यां वर्ण्यन्ते इति अन्तकृद्दशा।
-तस्वार्थवातिक ११२०, पृ०७३ (ख) अंगपण्णत्ती, ५१ ६ अंतयडदसा णाम अंगं चउबिहोवसग्गे दारुणे सहिऊण पाडिहेरं लवण णिवाणं गदे सुदंसणादि दस-दस साहू तित्थं पडिवणेदि ।
- कसायपाहुक, भा० १, पृ० १३०