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१६० जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा निरूपण । इस अंग में भगवान महावीरकालीन दश श्रावकों का ही वर्णन हआ है। इनमें भी गाथापति आनंद का विशद रूप में। आनन्द को अवधिज्ञान भी प्राप्त हुआ। सर्ववती गौतम का देशव्रती आनन्द से 'खमापना' कराना श्रमणधर्म में निहित सत्यनिष्ठा और आर्जव भाव का प्रतीक है।
वस्तुत: तीर्थ के चार स्तंभ हैं.श्रमण, श्रमणी, श्रावक और श्राविका। एक दृष्टि से श्रावक-श्राविका ही श्रमण-श्रमणियों की विद्यमानता के आधार हैं । श्रावकों के अभाव में श्रमणों का टिकना अति कठिन है। श्रावक-धर्म की भित्ति जितनी अधिक हढ़ होगी-सत्यनिष्ठा, शील, सदाचार और न्याय-नीति पर टिकी होगी; श्रमणधर्म की नींव भी उतनी ही प्रतिष्ठित होगी।
इस विचार के अनुसार उपासकदशा का महत्व गृहस्थ-श्रावक के लिए अत्यधिक है और इस अंग-सूत्र में गृही-धर्म का जीवनस्पर्शी वर्णन हआ है।