________________
१५८ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा आजीविक आचार्य गोशालक का अनुयायी था । देव से प्रेरणा प्राप्त कर वह महावीर को वन्दन करने गया। महावीर की धर्मदेशना सुन कर उसे श्रद्धा जागृत हई। उसकी प्रार्थना को सन्मान देकर भगवान उसकी कुंभशाला में पधारे। भगवान ने पूछा-'ये घड़े कैसे बनते हैं ?' उसने घटनिर्माण की सारी प्रक्रिया बताई। महावीर ने कहा- 'यदि कोई दुर्मति पुरुष धूप में सूखते हुए तेरे घड़ों को पत्थर से फोड़ने लगे, तेरी पत्नी के साथ छेड़छाड़-कुचेष्टा करने लगे तो तेरे मतानुसार ये सब कुछ नियतिकृत है। ऐसा करने में उस मनुष्य का कोई अपराध नहीं है। यदि तू उसे अपराध का दंड देता है तो फिर नियतिवाद का मानना कहाँ तक उचित है ?' भगवान के हृदयग्राही, तर्कयुक्त कथन से वह प्रभावित होकर महावीर का अनुयायी हुआ। गोशालक ने जब उसके मत-परिवर्तन की बात जानी तब वह वहाँ आया। उसने विविध उपमाओं से महावीर की स्तुति कर उसको अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयत्न किया किन्तु सफल न हो सका। मायावी देव ने भी उसकी परीक्षा ली। जीवन के अन्तिम क्षणों में उसने समाधिपूर्वक मृत्यु का वरण किया और स्वर्ग को प्राप्त हुआ।
आठवें अध्ययन में महाशतक श्रावक का वर्णन है। उसके पास अपार वैभव और तेरह पत्नियां थीं। भगवान महावीर से श्रावकधर्म स्वीकार किया। उसकी पत्नी रेवती अत्यन्त भोग-पिपासु, मांसलोलुपी और ईर्ष्यालु थी। उसने अपनी बारह सौतों (सपत्नियों) को शस्त्र एवं विष प्रयोग करके मार डाला था। मद्य-मांस के सेवन से उसकी वासनाएँ प्रबल हो गई थीं। एक बार महाशतक पौषधशाला में ध्यानस्थ थे। उस समय मद्य के नशे में चूर होकर वह बड़ी निर्लज्जता के साथ कामयाचना करने लगी। महाशतक को ध्यान में स्थिर देखकर उसे क्रोध आया और दुष्ट वचन बोलने लगी। पत्नी के इस निर्लज्ज और दुष्ट व्यवहार से महाशतक के मन में क्षोभ पैदा हुआ। उन्होंने कहा---'मैं अपने ज्ञानबल से कहता हूँ कि आज से सातवें दिन तेरी मृत्यु है। तू अलस रोग से पीड़ित होकर अत्यन्त वेदना और दुान के साथ मृत्यु को प्राप्त होकर प्रथम नरक में उत्पन्न होगी।' पति के मुंह से यह बात सुन भय और उद्वेग से वह व्याकुल हो उठी। सातवें दिन अत्यन्त पीड़ा और शोक के साथ उसने प्राण त्याग दिये । भगवान महावीर ने गौतम गणधर को भेजकर सूचित किया कि तुमने बड़े ही कर्कश वचनों के साथ पत्नी की तर्जना की और उसके हृदय