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________________ अंग साहित्य : एक पर्यालोचन १५७ यदि मेरी बात स्वीकार नहीं करेगा तो मैं इसी तलवार से तेरे टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा । कामदेव स्थिर रहा। दैत्य ने उस पर क्रूर प्रहार किये, फिर भी वह धर्म-चिन्तन में लीन रहा । दैत्य ने हाथी एवं सर्प बनकर उसे भयंकर वेदनाएँ दीं पर वह विचलित न हुआ। भगवान महावीर ने श्रमण श्रमणियों को बताया कि तुम्हें भी इसी प्रकार संयम धर्म में दृढ़ रहना चाहिए। जीवन के अन्तिम समय में उसने समता व शांति के साथ ६० दिन का अनशन कर देहत्याग किया और प्रथम स्वर्ग प्राप्त किया। तीसरे अध्ययन में चुलहीपिता और चौथे अध्ययन में सुरादेव का तथा पाँचवें अध्ययन में चुलणीशतक का वर्णन है। इन तीनों श्रावकों ने भी व्रत ग्रहण किये और अन्त में पाँच वर्ष तक पडिमाधारी (प्रतिमाधारी) के रूप में विरक्त जीवन की साधना करते हुए समाधि मरण प्राप्त कर प्रथम स्वर्ग में देव बने । छठे अध्ययन में तत्वज्ञानी कुंडकोलिक श्रावक का वर्णन है। उसने भगवान महावीर से श्रावक धर्म ग्रहण किया। एक बार मध्याह्न में वह अशोकवाटिका में बैठा हुआ धर्मचिन्तन कर रहा था। उस समय एक देव आया । उस देव ने कहा- 'श्रमण महावीर द्वारा कथित धर्म उपयुक्त नहीं है क्योंकि उसमें उत्थान और पराक्रम पर बल दिया गया है। जबकि सब कुछ तो नियति के आधार पर ही चलता है। गोशालक की धर्मप्रज्ञप्ति युक्तियुक्त है जिसमें उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पराक्रम कुछ भी नहीं है, जो कुछ है वह नियति है । अतः महावीर की धर्मप्रज्ञप्ति को छोड़कर गोशालक की धर्मप्रज्ञप्ति स्वीकार करो।' कुंडकोलिक ने प्रतिवाद किया- 'जो तुम्हें यह दिव्य ऋद्धि आदि प्राप्त हुई है क्या वह बिना पुरुषार्थ के हुई है ?' देव'हाँ ।' कुंडकोलिक - 'जितने भी पुरुषार्थहीन हैं वे आपके कथनानुसार देव बनने चाहिए पर ऐसा क्यों नहीं हुआ ?' देव पास इस तर्क का कोई उत्तर नहीं था। महावीर ने अपने श्रमण समुदाय के समक्ष प्रस्तुत आदर्श तार्किक श्रावक की प्रशंसा की । इसका शेष जीवन भी अन्य श्रावकों की तरह धर्म आराधना में बीता और अंत में समाधिमरण प्राप्त किया । सातवें अध्ययन में कुम्भकार सकडालपुत्र का वर्णन है । वह पहले
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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