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________________ १४४ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा (२) तस्कर प्रयोग-आदमी को वेतन अथवा धन देकर चोरी, डकैती, ठगी आदि करवाना। (३) विरुद्ध राज्यातिक्रम-भिन्न-भिन्न राज्य वस्तुओं के आयातनिर्यात पर कुछ प्रतिबन्ध लगाते हैं, उन पर कर आदि की व्यवस्था करते हैं, राज्य के उन नियमों का उल्लंघन करना, अवैधानिक व्यापार करना, निषिद्ध वस्तुएँ एक स्थल से दूसरे स्थल पर पहुँचाना, राज्य-हित के विरुद्ध गुप्त कार्य करना, ये सब विरुद्ध राज्यातिक्रम हैं। (४) कूटतुला-कूटमान-नाप-तोल व लेन-देन में बेईमानी करना। इससे विश्वासघात होता है। किसी के अज्ञान का इस प्रकार अनुचित लाभ नहीं उठाना चाहिए। (५) तत्प्रतिरूपक व्यवहार-वस्तु में मिलावट करना, अच्छी वस्तु बताकर बुरी वस्तु देना। इन व्रतों का व्यापार व व्यवहार में कितना महत्त्वपूर्ण स्थान है यह कहने की आवश्यकता नहीं। (४) स्वदारसंतोष व्रत . इस व्रत में श्रावक पराई स्त्री के साथ सहवास का त्याग करता है और अपनी स्त्री के साथ भी सहवास की मर्यादा करता है। यह व्रत दो करण व तीन योग पूर्वक भी हो सकता है पर एक करण एक योग आवश्यक माना है। इस व्रत में परदारा, वेश्या और कुमारिका का त्याग स्वतः ही हो जाता है। इसके मुख्य पाँच अतिचार हैं (१) इत्वरिक परिगृहीतागमन-ऐसी स्त्री के साथ सहवास करना जो कुछ समय के लिए रखी गई हो। (२) अपरिगृहीतागमन-वेश्या आदि के साथ सहवास करना। (३) अनंगकोडा-अप्राकृतिक मैथुन का सेवन करना। (४) परविवाहकरण-कन्यादान को पूण्य समझकर रागादि या स्वार्थवश दूसरे के लड़के-लड़कियों का बेमेल विवाह करा देना। (५) कामभोगतीवाभिलाष-विषय-भोग व कामक्रीड़ा में तीव्र आसक्ति का होना। इन अतिचारों से सदाचार अथवा ब्रह्मचर्य व्रत दूषित होता है अत: श्रावक को इनसे बचना चाहिए।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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