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अंग साहित्य : एक पर्यालोचन १४३ (२) रहस्याम्याख्यान-किसी की गृह्य बात किसी के सामने प्रकट कर उसके साथ विश्वासघात करना आदि ।
(३) स्वदारमंत्रभेद-पति-पत्नी का एक दूसरे की गुप्त बातों को किसी अन्य के सामने प्रकट करना-स्वदार या स्वपति-मंत्रभेद है। इससे कुटुम्ब में वैमनस्य पैदा होता है और बाहर बदनामी भी होती है।
(४) मिथ्योपदेश-सच्चा-झूठा समझाकर किसी को कूमार्ग पर लगाना आदि।
(५) कूटलेखक्रिया-मोहर, हस्ताक्षर आदि द्वारा झूठी लिखापढ़ी करना तथा खोटा सिक्का चलाना आदि ।
तत्त्वार्थसूत्र में 'सहसाभ्याख्यान' के स्थान पर 'भ्यासापहार' आया है जिसका अर्थ है किसी की धरोहर रखकर इन्कार हो जाना है। श्रावक को इन सभी अतिचारों से बचकर सम्यक प्रकार से सत्य का पालन करना चाहिए। (३) स्थूल अवत्तावानविरमण व्रत
श्रावक का तृतीय व्रत स्थूल अदत्तादानविरमण है। श्रमण के लिए बिना अनुमति के दन्त शोधनार्थ तृण आदि ग्रहण करना भी वर्ण्य माना गया है। श्रावक स्थूल अदत्तादान का त्याग करता है । स्थूल चोरी के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-किसी दूसरे के घर में सेन्ध लगाना, किसी की जेब काटना, किसी के घर का ताला तोड़ना या दूसरी चाबी लगाकर खोलना, या बिना पूछे किसी दूसरे की गाँठ खोलकर वस्तु निकाल लेना, किसी का गढ़ा हुआ धन निकाल लेना, डाका डालना, ठगना । कोई वस्तु प्राप्त हुई हो तो उसके मालिक का पता न लगाना, पता लगने पर भी वस्तु मालिक को न लौटाना, चौर्यबुद्धि से किसी की वस्तु उठा लेना और उसे अपने पास रख लेना। श्रावक चोरी का त्याग भी पूर्व व्रतों की तरह दो करण और तीन योग से करता है। प्रस्तुत व्रत के पांच अतिचार हैं।
(१) स्तेनाहुत-जानकारी के अभाव में अथवा यह समझ कर कि चोरी करने व कराने में तो पाप है, पर चोर के द्वारा लाई गई, चोरी की वस्तु खरीदने या घर में रखने में क्या हर्ज है ? किन्तु यह स्मरण रखना चाहिए कि यह अतिचार है। इसमें लोभ के कारण औचित्य-अनौचित्य का खयाल नहीं रहता है । इससे चोरी को प्रोत्साहन मिलता है।