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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
आदि वध है। जिस कार्य विशेष से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से त्रस प्राणियों की हिंसा होती है, वह वध है ।
(३) छविच्छेद- किसी भी प्राणी के अंगोपांग काटना । छविच्छेद के समान वृत्तिच्छेद भी अनुचित है। किसी की आजीविका का सम्पूर्ण छेद करना, उचित पारिश्रमिक से कम देना, आदि भी छविच्छेद के समान दोषयुक्त है।
(४) अतिभार - बैल, ऊँट, घोड़ा आदि पशुओं पर या अनुचर एवं कर्मचारियों पर उनकी शक्ति से अधिक बोझ लादना अतिभार है। किसी की शक्ति से अधिक कार्य करवाना भी अतिभार ही है ।
(५) भक्तपान विच्छेद - समय पर भोजन पानी न देना, नौकर को समय पर वेतन न देना, जिससे उसे कष्ट पहुँचे आदि ।
श्रावकों को इन अतिचारों से सदा बचना चाहिए। (२) स्थूल मृषावादविरमण व्रत
श्रावक श्रमण के समान पूर्णरूप से सत्य व्रत का पालन नहीं कर पाता अतः वह स्थूल मृषावाद का त्याग करता है। यह त्याग भी दो करण व तीन योग से होता है। स्थूल झूठ वह है— जिससे समाज में अप्रतिष्ठा हो । स्नेही साथियों में अपनी अप्रामाणिकता प्रगट हो। लोगों से अप्रतीति हो और राजदंड का भागी होना पड़े। इस प्रकार के झूठ से मानव का सर्वतोमुखी पतन होता है। अनेक कारणों से मानव स्थूल झूठ का प्रयोग करता है, जैसे अपने पुत्र-पुत्रियों के विवाह हेतु पूर्वपक्ष के समक्ष मिथ्या प्रशंसा करना करवाना। पशु-पक्षियों के क्रय-विक्रय के लिए मिथ्या बात कहना | भूमि के सम्बन्ध में झूठ का प्रयोग करना या करवाना। नौकरी आदि के लिए असत्य का प्रयोग करना। किसी की धरोहर या गिरवी रखी हुई वस्तु के लिए झूठ बोलना झूठी गवाही देना और दिलवाना। झूठे को सच्चा और सच्चे को झूठा सिद्ध करने का प्रयास करना । श्रावक इस प्रकार मिथ्या बोलने व बुलवाने का त्याग करता है ।
स्थूल मृषावादविरमण व्रत के मुख्य रूप से पाँच अतिचार हैं
(१) सहसाम्याख्यान - बिना बिचारे किसी पर झूठा आरोप लगाना, किसी के प्रति गलत धारणा पैदा करना, सज्जन को दुर्जन, गुणी को अवगुणी, ज्ञानी को अज्ञानी, ब्रह्मचारी को व्यभिचारी कहना आदि ।