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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
आनन्द श्रावक
एक बार भगवान महावीर वाणिज्यग्राम पधारे । राजा जितशत्रु व हजारों की संख्या में जनता दर्शनार्थ व उपदेश श्रवणार्थ उपस्थित हुई। नगर में अद्भुत चहल-पहल थी । आनन्द गृहपति ने महावीर के शुभागमन का संवाद सुना। वह बहुत ही प्रसन्न हुआ और सुसज्जित होकर भगवान के समवसरण में पहुँचा । उपदेश श्रवणकर उसने भगवान से निवेदन किया- भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन में श्रद्धाशील हूँ। उसमें मेरी श्रद्धा व रुचि है । जैसा आपने कहा वह पूर्ण सत्य है । आपके पास बहुत से राजा, युवराज, सेनापति, नगर रक्षक, मांडलिक, कौटुम्बिक, श्रेष्ठि, सार्थवाह मुंडित होकर आगार धर्म से अनगार धर्म को ग्रहण करते हैं। मैं श्रमण जीवन की कठोरचर्या को पालन करने में असमर्थ हैं अतः गृहस्थधर्म के द्वादश व्रत ग्रहण करना चाहता हूँ | महावीर ने कहा- 'जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो ।' बारह व्रत
आनन्द श्रावक ने द्वादश व्रतों को ग्रहण किया। व्रतों का निरूपण इस प्रकार है - द्वादश व्रतों में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत हैं। प्रस्तुत आगम में गुणव्रतों व शिक्षाव्रतों का संयुक्त नाम शिक्षाव्रत है। पहले पाँच अणुव्रत हैं। अणुव्रत का अर्थ छोटे व्रत हैं। श्रमण हिंसादि का पूर्ण परित्याग करता है इसलिए उसके व्रत महाव्रत कहलाते हैं । किन्तु श्रावक उनका पालन मर्यादित रूप से करता है, अतः उसके व्रत अणुव्रत कहे जाते हैं। जिन दोषों से व्रत टूटने की संभावना बनी रहती है उनका भी इसमें निरूपण किया है। श्रावक को उन्हें जानना चाहिए। उन संभावित दोषों को 'अतिचार' कहा है।
व्रत के अतिक्रमण की चार कोटियाँ बताई गई हैं। अतिक्रम - व्रत को उल्लंघन करने का मन में ज्ञात व अज्ञात रूप से विचार आना । व्यतिक्रम --- उल्लंघन करने के लिए प्रवृत्ति करना। अतिचार व्रत का अंशरूप से उल्लंघन करना । अनाचार - व्रत का पूर्णरूप से टूट जाना ।
अनजान में जो दोष लग जाता है वह अतिचार है और जानबुझकर व्रत भंग करना अनाचार है।
(१) स्थूल प्राणातिपातविरमण व्रत
aran के अहिंसा व्रत का नाम स्थूल प्राणातिपातविरमण है।