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७. उपासकदशांग
नामकरण
प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का सातवाँ अंग है। इसमें भगवान महावीर युग के दश उपासकों का पवित्र चरित्र है। अतः इसका नाम 'उवासगदसाओ' है। उपासक शब्द जैन गृहस्थ के लिए व्यवहृत होता है। दशा शब्द दश संख्या का वाचक एवं अवस्था का सूचक है। उपासकदशा में दश उपासकों की कथाएँ हैं । अत: दश का संख्यावाचक अर्थ उपयुक्त है । साथ ही उपासकों की अवस्था का भी वर्णन है अत: इस अर्थ की दृष्टि से भी दशा शब्द यथार्थ है। श्रमण परंपरा में श्रमणों की उपासना करने वाले गृहस्थों को श्रमणोपासक या उपासक कहा है। भगवान महावीर के लाखों उपासक थे। किन्तु इस आगम में उनके मुख्य दश उपासकों का ही वर्णन किया गया है। विषय-वस्तु
स्थानांग में उपासकदशांग में आये हुए दश श्रावकों के नाम इस प्रकार बताये हैं। आनंद, कामदेव, चूलणीपिता, सुरादेव, चुल्लशतक, कुण्डकोलिक, सकडालपुत्र, महाशतक, नंदिनीपिता, सालतियापियासालेपिकापिता। उपासकदसांग में दसवाँ नाम सालीहिपिया आया है। कृछ प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों में लंतियापिया, लत्तियपिया, लतिणीपिया, लेतियापिया आदि नाम भी उपलब्ध होते हैं। इसी तरह नंदिनीपिता के स्थान पर ललितांकपिया और सालेइणीपिया नाम प्राप्त होते हैं । समवायोग और नंदीसूत्र में अध्ययनों की संख्या का निर्देश किया गया है किन्तु नामों का निर्देश नहीं किया है।
प्रस्तुत आगम में एक श्रुतस्कन्ध, दश अध्ययन, दश उद्देशनकाल, दश समुद्देशन काल कहे हैं। इसमें संख्यात हजार पद, संख्यात अक्षर, संख्यात नियुक्तियाँ, संख्यात संग्रहणियाँ, संख्यात प्रतिपत्तियाँ और संख्यात श्लोक बताये हैं। वर्तमान में इस आगम का परिमाण ८१२ श्लोक है। उपासक दशा में वर्णित उपासक विभिन्न जाति के और विभिन्न व्यवसाय करने वाले थे। श्रावकों की जीवनचर्या का वर्णन इस प्रकार है।