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________________ अंग साहित्य : एक पर्यालोचन १३७ सत्रहवें अध्ययन में समुद्री अश्वों का उदाहरण है जो शब्द रूप आदि विषयों के लुभावने आकर्षण से आकर्षित होकर पराधीनता के पंक में निमग्न होते हैं। जो विषयों से विरक्त रहते हैं वे स्वतंत्रता के स्वर्ग का अनुभव करते हैं। अठारहवें अध्ययन में सुसुमा का वर्णन है जो धन्ना सार्थवाह की पुत्री थी । उसकी देखभाल के लिए चिलात नियुक्त किया गया था, पर वह अपनी काली करतूतों से बच्चों को परेशान करता। अतः उसे घर से निकाल दिया और वह अनेक दुर्व्यसनों का शिकार हो गया, साथ ही तस्कर अधिपति भी। एक दिन उसने सुसुमा का अपहरण किया। धन्ना सार्थवाह अपने पुत्रों के साथ, भीषण अटवियों में उसका पीछा करते हुए आगे बढ़ रहे थे। तब चिलात द्वारा मारी हुई सुसुमा की मृतदेह उन्हें मिली। वे उस समय क्षुधा-पिपासा से इतने पीड़ित थे कि प्राणों का रक्षण करना एक समस्या हो गई थी। अतः सुसुमा के मृतदेह का भक्षण कर अपने जीवन को बचाया । सुसुमा के शरीर का भक्षण करते समय धन्ना के मन में किञ्चित् मात्र भी राग नहीं था, केवल प्राण रक्षा का ही प्रश्न था। इसी प्रकार साधक को राग रहित होकर आहार करना चाहिए । आहार द्वारा शरीर रक्षा का लक्ष्य 'आत्म-साधना' ही है।' उन्नीसवें अध्ययन में पुण्डरीक और कुण्डरीक का उदाहरण है। इसमें पुण्डरीक और कुण्डरीक की कथा है। जब राजा महापद्म श्रमण बने तब उनके ज्येष्ठ पुत्र पुण्डरीक राज्य का संचालन करने लगे और कुण्डरीक युवराज बने। जब पुन: महापद्म मुनि वहाँ आये तो कुण्डरीक ने श्रमणधर्म स्वीकार किया। कुछ समय के पश्चात् जब कुण्डरीक मुनि पुन: वहाँ पर आये उस समय वे दाहज्वर से ग्रसित थे। राजा पुण्डरीक ने उनका औषधोपचार करवाया और स्वस्थ होने पर उन्हें श्रमण मर्यादा का स्मरण दिलाकर विहार के लिए उत्प्रेरित किया। किन्तु मुनि कुण्डरीक के अन्तर्मानस में भोग के प्रति तीव्र आकर्षण पैदा हो चुका था। वे पुन: कुछ समय के पश्चात् लौटकर उसी नगरी में आ गये। पुण्डरीक के समझाने पर भी जब वे न समझे तब अपने वस्त्र आभूषण आदि कुण्डरीक को देकर कुण्डरीक का १ संयुक्त निकाय (२ पृ० ६७) में भी भूत कन्या के मांस को भक्षण कर जीवित रहने का वर्णन है।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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