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________________ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा मल्ली भगवती ने गृहस्थाश्रम में उस युग की प्रसिद्ध परिव्राजिका चोखा को शुचिमूलक धर्म की सदोषता प्रतिपादित कर विनयमूलक धर्म की शिक्षा देते हुए कहा- 'जैसे रक्तरंजित वस्त्र को रक्त से धोने पर स्वच्छ नहीं बनाया जा सकता वैसे ही हिंसादि से आत्मा शुद्ध नहीं बन सकती ।' १३४ मुख्य उदाहरणों के साथ कुछ अवान्तर कथाएँ भी प्राप्त होती हैं। परिव्राजिका चोखा जितशत्रु राजा के पास जाती है। राजा जितशत्रु पूछता है तुम बहुत घूमती हो क्या तुमने मेरे जैसा अंतःपुर कहीं देखा है ? चोखा ने मुसकराते हुए कहा- 'तुम कूपमंडूक जैसे हो ।' 'कूपमंडूक कौन है ?" यह जिज्ञासा जितशत्रु ने प्रस्तुत की । चोखा ने कहा- 'कुएं में एक मेंढक था वह वहीं पर जन्मा, वहीं पर बढ़ा, उसने अन्य कोई तालाब या जलाशय नहीं देखा था। वह अपने कूप को ही सब कुछ मानता था । एक दिन एक समुद्री मेंढक उस कूप में आया। कूपमंडूक ने उससे प्रश्न किया- तुम कौन हो, कहाँ से आये हो ? उसने कहा कि मैं समुद्र का मेंढक हूँ और वहीं से आया हूँ । कूपमंडूक ने पुनः प्रश्न किया -- समुद्र इतना बड़ा है ? उस मेंढक ने कहा- वह तो बहुत ही बड़ा है। कूपमंडूक ने अपने पैर से रेखा खींचते हुए कहा- क्या समुद्र इतना बड़ा है ? समुद्री मेंढक ने मुस्कराते हुए कहा- इससे बहुत बड़ा है। कूपमंडूक ने कुएं के पूर्वी तट से पश्चिमी तक फुदक कर कहा- क्या समुद्र इतना बड़ा है ? समुद्री मंडूक ने कहा- इससे भी बहुत बड़ा है। और कूपमंडूक ने अपने कुए के अतिरिक्त किसी जलाशय आदि को देखा न था अतः वह उसकी बात पर विश्वास न कर सका । प्रस्तुत अध्ययन में अरणक श्रावक, और छह राजाओं का परिचय भी दिया गया है। नवें अध्ययन में माकंदी पुत्र जिनपाल और जिनरक्षित का वर्णन है। जो अनेक बार विदेश यात्रा करते हैं। जब वे बारहवीं बार प्रस्थित होने लगे तब उनके माता-पिता ने उन्हें बहुत समझाया पर आज्ञा की अवहेलना करके जाने पर भयंकर तूफान से उनकी नौका टूट गई और वे रत्नद्वीप में रत्नादेवी के चंगुल में फँस गए। शैलक यक्ष ने उनका उद्धार करने का वचन दिया पर जिनरक्षित ने वासना से चलचित्त होकर अपने प्राण गँवाये और जिनपाल विचलित न होने से अपने स्थान पर सुरक्षित
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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