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________________ अंग साहित्य : एक पर्यालोचन १३३ दीक्षा का समुचित प्रबन्ध करते हैं। थावच्चापुत्र शैलक राजर्षि को ५०० साथियों के साथ दीक्षा प्रदान करते हैं, और शुकदेव परिव्राजक को विचारचर्चा के पश्चात् १००० परिव्राजकों के साथ दीक्षा प्रदान करते हैं। शैलक राजर्षि अस्वस्थ होने पर औषधोपचार के पश्चात् पुनः प्रमाद से ग्रसित हो जाते हैं तब विनयमूर्ति पंथक उनका प्रमाद परिहार करते हैं। . छठे अध्ययन में तूम्बे के उदाहरण से इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि मिट्टी के लेप से भारी बना हुआ तूम्बा जल में डूब जाता है और लेप हटने से तैरने लगता है। वैसे ही कर्मों के लेप से आत्मा भारी बनकर संसार सागर में डूबता है और कर्मों के लेप से मुक्त होकर संसार सागर से तिरता है। सातवें अध्ययन में धन्ना सार्थवाह की चार पुत्रवधुओं का उदाहरण है । श्रेष्ठि अपनी चारों पुत्रवधुओं को ५-५ शाली के दाने देता है। प्रथम पुत्रवधू ने वे फेंक दिये। दूसरी ने प्रसाद समझकर खा लिये। तीसरी ने उन्हें संभालकर रक्खा और चौथी ने खेती करवा कर वे हजारों गुने अधिक बढ़ा दिये । वैसे ही गुरु पाँच महाव्रत रूप शाली के दाने शिष्यों को प्रदान करता है । एक उसे भंग कर देता है। दूसरा उसे खानपान और विलास में गँवा देता है। तीसरा उसे सुरक्षित रखता है और चौथा उसे साधना के द्वारा विकसित करता है।' आठवें अध्ययन में तीर्थंकर मल्ली भगवती का वर्णन है । उनका जन्म, बालक्रीड़ा, विवाह के लिए छह राजाओं का आगमन, स्वर्ण पुतलीके माध्यम से राजाओं को प्रतिबोध देकर उनके साथ मल्ली भगवती की दीक्षा और दीक्षा के दिन ही घाती कर्मों को नष्ट कर केवलज्ञान, तीर्थ की स्थापना कर तीर्थंकर बनना, विहारक्षेत्र, संहनन, संस्थान, निर्वाण, आदि का पूर्ण विवरण है। १ प्रोफेसर टायमन ने अपनी जर्मन पुस्तक 'बुद्ध और महावीर' में बाइबिल की मेथ्यू और ल्यूक की कथा के साथ तुलना की है। वहां शाली के पांच दानों के स्थान पर टेलेन्ट शब्द है । टेलेन्ट उस युग में चलने वाला सिक्का था । एक व्यक्ति परदेश जाते समय अपने दो पुत्रों को दस-दस टेलेन्ट दे गया था। एक ने ब्यापार द्वारा वे कई गुनी करदी और दूसरे ने सुरक्षित जमीन में रखदीं। लौटने पर पिता पहले पुत्र से प्रसन्न हुआ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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