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१३२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा परिमित त्रस, अनन्त स्थावर आदि का वर्णन है। इसका वर्तमान में पद परिमाण ५५०० श्लोक प्रमाण हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध
प्रथम श्रुतस्कन्ध में ऐतिहासिक और कल्पित दोनों प्रकार की कथाएँ हैं । मेघकुमार आदि का चरित्र ऐतिहासिक है और तुंबा आदि की कथाएँ रूपक शैली में हैं। इन रूपक कथाओं का उद्देश्य भी भव्य जीवों को प्रतिबोध देना है।
दूसरे श्रतस्कन्ध में १० वर्ग हैं, उनमें से प्रत्येक धर्मकथा में ५००-५०० आख्यायिकाएँ हैं और एक-एक आख्यायिका में ५००-५०० उप-आख्यायिकाएँ हैं और एक-एक उपाख्यायिका में ५००-५०० आख्यायिकाएँ और उपाख्यायिकाएँ हैं। इस प्रकार ३१ करोड़ उदाहरणस्वरूप कथाएँ हैं । पर वे सारी कथाएं वर्तमान में उपलब्ध नहीं है।
प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन में श्रेणिक के पुत्र मेधकुमार का वर्णन है। वह श्रमण भगवान महावीर के उपदेश को श्रवण कर संयम मार्ग स्वीकार करता है, पर शय्या परीषह से खिन्न होकर संयम से विचलित होने लगता है । किन्तु भगवान महावीर उसे पूर्व भव सुनाकर संयम में स्थिर करते हैं । वह श्रमणों की सेवा के लिए सर्वस्व समर्पित कर देता है।
दूसरे अध्ययन में धन्ना सार्थवाह और विजय चोर का उदाहरण है। धन्ना सार्थवाह कारागृह में अपने पुत्र के हत्यारे विजय चोर को भोजन देते हैं क्योंकि उसकी बिना सहायता के वे शौचादि कार्य नहीं कर सकते थे। वैसे ही साधक को आहारादि देकर शरीर का संयम के लिए निर्वाह करना चाहिए।
___ तीसरे अध्ययन में मयूर के अण्डों के माध्यम से यह सत्य तथ्य प्रगट किया है कि श्रद्धानिष्ठ व्यक्ति किस प्रकार इच्छित फल को प्राप्त करता है और संशयशील व्यक्ति फल से वंचित रहता है।
चतुर्थ अध्ययन में दो कछुओं के उदाहरण से इस बात पर प्रकाश डाला है कि इन्द्रियों को वश में रखने वाले साधक को साधना से कोई विचलित नहीं कर सकता और जिनकी इन्द्रियाँ वश में नहीं है वे प्रथम कूर्म की भांति पाप रूपी श्रृगाल से ग्रसित हो जाते हैं।
पांचवें अध्ययन में थावच्चापुत्र का वर्णन है। वासुदेव श्रीकृष्ण उसकी