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________________ अंग साहित्य : एक पर्यालोचन १३१ किया है। पं० बेचरदास जी दोशी, डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री का मानना है कि ज्ञातपूत्र महावीर की धर्मकथाओं का प्ररूपण होने से भी इस अंग को उक्त नाम से कहा गया है। श्वेताम्बर साहित्य में भगवान महावीर के वंश का नाम ज्ञात बताया गया है और दिगम्बर साहित्य में नाथ लिखा है। अत: कुछ मूर्धन्य मनीषियों ने प्रस्तुत आगम के नाम के साथ महावीर का सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास किया है। उनके अभिमतानुसार ज्ञातृधर्मकथा या नाथधर्मकथा से तात्पर्य है 'भगवान महावीर की धर्मकथा'।५ पाश्चात्य विचारक वेबर का मन्तव्य है कि जिस ग्रन्थ में ज्ञातृवंशीय महावीर के लिए कथाएँ हों वह 'णायाधम्मकहा' है। पर समवायांग' व नन्दीसूत्र में जिन अंगों का परिचय दिया गया है उसके आधार से 'ज्ञातवंशीय महावीर की धर्मकथा' यह अर्थ संगत नहीं बैठता। वहाँ स्पष्ट निरूपण है कि ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञातों (उदाहरण-भूत व्यक्तियों) के नगर, उद्यान आदि का निरूपण किया गया है। इस आगम के प्रथम अध्ययन का नाम उक्खित्तणाए--'उत्क्षिप्तज्ञात' है। यहाँ ज्ञात का अर्थ उदाहरण ही सटीक प्रतीत होता है। इसमें उदाहरण प्रधान धर्मकथाएँ उकित हैं। इसमें उन वीर-धीर साधकों का वर्णन है जो महान् उपसर्ग उपस्थित होने पर भी साधना के महामार्ग से च्युत नहीं हुए। इस आगम में परिमित वाचनाएँ, अनुयोगद्वार, वेढा, छन्द, श्लोक, निरुक्तियाँ, संग्रहणियां व प्रतिपत्तियां संख्यात संख्यात हैं। इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं । प्रथम श्रुतस्कन्ध में १६ अध्ययन हैं और दूसरे श्रुतस्कन्ध में १० वर्ग हैं। दोनों श्रुतस्कन्धों के २९ उद्देशनकाल हैं, २६ समुद्देशन काल हैं, ५७६००० पद हैं, संख्यात अक्षर हैं, अनन्त गम, अनंत पर्याय, १ भगवान महावीर नी धर्मकथाओ, टिप्पण पृ० १८० । २ प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ०७४ । ३ प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृ० १७२ । ४ भगवान महावीर-एक अनुशीलन, पृ० २३८ से २५८ । ५ जैन साहित्य का इतिहास-पूर्वपीठिका, पृ०६६० । ६ Stories from the Dharma of Naya (स्टोरीज फ्रॉम दी धर्म ऑफ नाया) इं, ए, जि० १६, पृ० ६६ । ७ समवायांग प्रकीर्णक, समवाय सूत्र, ६४। ८ नन्दीसूत्र ८५
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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