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________________ ६. ज्ञाताधर्मकथा माम बोध द्वादशांगी में ज्ञाताधर्मकथा का छठा स्थान है । इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध में ज्ञात उदाहरण और दूसरे श्रुतस्कन्ध में धर्मकथाएँ हैं । एतदर्थ प्रस्तुत आगम का मूल नाम 'णायाणिय धम्मकहाओ' है। टीकाकार अभयदेव सूरि ने टीका में यही अर्थ किया है । तस्वार्थ भाष्यकार ने ज्ञातधर्मकथा सूत्र का प्रयोग किया है। भाष्यकार ने इसका स्पष्टीकरण करते हुए लिखा है कि उदाहरणों के द्वारा जिसमें धर्म का कथन किया है वह आगम ज्ञातधर्मकथा है ।" प्रस्तुत आगम का नाम जयधवला में णाहधम्म कहा- 'नाथधर्मकथा' प्राप्त होता है। नाथ का अर्थ स्वामी है। नाथधर्मकथा का तात्पर्य है कि नाथ तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित धर्मकथा । संस्कृत ग्रन्थों में प्रस्तुत आगम का नाम ज्ञातृधर्मकथा मिलता है। आचार्य अकलंक ने तत्त्वार्थराजवार्तिक में ज्ञातृधर्मकथा यह नाम दिया है। आचार्य मलयगिरि व आचार्य अभयदेव * उदाहरण प्रधान धर्मकथा को ज्ञाताधर्मकथा कहा है। उनकी दृष्टि से प्रथम अध्ययन में ज्ञात है और दूसरे अध्ययन में धर्मकथाएँ हैं । आचार्य हेमचन्द्र ने अपने कोश में 'ज्ञातप्रधान धर्मकथाएँ' ऐसा अर्थ १ ज्ञाताः दृष्टान्ताः तानुपादाय धर्मो यत्र कथ्यते ज्ञातधर्मकथाः । -- तत्वार्थभाष्य २ तस्वार्थवार्तिक १।२०, पृष्ठ ७२ ३ ज्ञातानि उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथाः अथवा ज्ञातानि ज्ञाताध्ययनानि प्रथम स्कन्धे, धर्मकथा द्वितीयश्रुतस्कन्धे, यासु ग्रन्थपद्धतिषु (ता) ज्ञाताधर्मकथा: । नंदीवृत्ति, पत्र २३०, ३१ ४ ज्ञातानि - उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथा, दीर्घत्वं संज्ञात्वाद् अथवा प्रथम तस्कन्sो ज्ञाताभिधायकत्वात् ज्ञातानि द्वितीयस्तु तथैव धर्म्मकथाः । - समवायांग पत्र १०८
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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