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________________ १२७ अंग साहित्य : एक पर्यालोचन ऐतिहासिक विद्वानों का यह अनुमान है कि प्रस्तुत आगम उन आगमों के बाद में रचा गया है क्योंकि पूर्वरचित होता तो उत्तरवर्ती रचनाओं का इसमें कैसे उल्लेख होता और उनकी विषय-वस्तु की सूचना इसमें कैसे होती ? उत्तर में हम यह निवेदन करना चाहेंगे कि जो अन्य आगमों का सूचन किया गया है वह आगम लेखन के समय देवधिगणी क्षमाश्रमण ने किया है | आगम लेखन में अनुक्रम से आगम नहीं लिखे गये थे। जिन आगमों को पहले लिखा था और उस विषय का वर्णन उन आगमों में विस्तार से हो चुका था, उन विषयों की पुनरावृत्ति न हो इसी कारण देवद्धिगणी ने यह उपक्रम किया था। इसलिए इसकी मूलरचना प्राचीन ही है। यह गणधरकृत ही है । मंगलाचरण इस आगम में सर्वप्रथम नमस्कार महामंत्र से और उसके पश्चात् 'नमो बंभीए लिवीए', 'नमो सुयस्स' के रूप में मंगलाचरण किया गया है । उसके पश्चात् १५ वें १७वें २३वें और २६ वें शतक के प्रारंभ में भी 'नमो सुयदेवयाए भगवईए' इस पद के द्वारा मंगलाचरण किया गया है। इस प्रकार छह स्थानों पर मंगलाचरण है। जबकि अन्य आगमों में एक स्थान पर भी मंगलाचरण नहीं मिलता है । प्रस्तुत आगम के उपसंहार में " इक्कचत्तालीसइमं रासी जुम्मसयं समत्तं" यह समाप्तिसूचक पद उपलब्ध होता है। इसमें यह बताया गया है कि इसमें १०१ शतक थे किन्तु इस समय केवल ४१ शतक ही उपलब्ध होते हैं। समाप्तिसूचक इस पद के पश्चात् यह उल्लेख मिलता है कि 'सव्वाए भगवईए अठतीस सयं सयाणं (१३८ ) उद्देसगाणं १९२५ । सब शतकों की संख्या अर्थात् अवान्तर शतकों को मिलाकर कुल शतक १३८ है और उद्देशक १९२५ हैं । प्रथम शतक से बत्तीसवें शतक तक और इकतालीसवें शतक में कोई अवान्तर शतक नहीं है । ३३वें शतक से ३६ वें शतक तक जो ७ शतक हैं इनमें १२-१२ अवान्तर शतक हैं । ४० वे शतक में २१ अवान्तर शतक हैं। अत: इन आठ शतकों की परिगणना १०५ अवान्तर शतकों के रूप में की गई है। इस तरह अवान्तर शतक रहित ३३ शतकों और १०५ अवान्तर शतक वाले ८ शतकों को मिलाकर १३८ शतक बताये गये हैं
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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