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________________ १२८ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा किन्तु संग्रहणी पद में जो उद्देशकों की संख्या १९२५ बताई गई है उसका आधार अन्वेषणा करने पर भी प्राप्त नहीं होता । प्रस्तुत आगम के मूलपाठ में इसके शतकों और अवान्तर शतकों के उद्देशकों की संख्या दी गई है। उसमें ४०वें शतक के २१ अवान्तर शतकों में से अन्तिम १६ से २१ अवान्तर शतकों के उद्देशकों की संख्या स्पष्ट रूप से नहीं दी गई है किन्तु जैसे इस शतक के पहले से १५वें अवान्तर शतक तक के प्रत्येक की उद्देशक संख्या ११ बताई है, उसी तरह शेष अवान्तर शतकों में से प्रत्येक की उद्देशक संख्या ११-११ मान लें तो व्याख्याप्रज्ञप्ति के कुल उद्देशकों की संख्या १८८३ होती है। कितनी ही प्रतियों में 'उद्देसगाण' इतना ही पाठ प्राप्त होता है। संख्या का निर्देश नहीं किया गया है। इसके बाद एक गाथा है जिसमें व्याख्या प्रज्ञप्ति की पद संख्या ८४ लाख बताई है। आचार्य अभयदेव ने इस गाथा की विशिष्ट संप्रदायगम्यानि' यह कह कर व्याख्या की है। इसके बाद की गाथा में संघ की समुद्र के साथ तुलना की है और गौतम प्रभृति गणधरों को व भगवती प्रभृति द्वादशांगी रूप गणिपिटक को नमस्कार किया है। और भी मंगलाचरण हैं। आचार्य अभयदेव का मन्तव्य है कि जितने भी नमस्कारपरक उल्लेख हैं वे सभी लिपिकार और प्रतिलिपिकार द्वारा किये गये हैं। प्रस्तुत आगम में कितनी ही बातें पुन:-पुनः आई हैं इसका मूल कारण स्थान भेद, प्रश्नकर्ता के भेद और कालभेद हैं। उपसंहार प्रस्तूत अंग 'व्याख्याप्रज्ञप्ति प्रश्नोत्तर शैली में है। प्रश्नकार हैं गणधर गौतम और उत्तर देने वाले हैं स्वयं तीर्थंकर भगवान महावीर । ___ गौतम अनेक प्रकार की जिज्ञासाएँ प्रस्तुत करते हैं और श्रमण भगवान महावीर उन सब का समाधान । इस कारण इस अंग में सभी प्रकार का ज्ञान-विज्ञान भरा हुआ है। दर्शन सम्बन्धी, आचार सम्बन्धी, लोक-परलोक, आदि का शायद ही कोई ऐसा विषय हो जिसकी इसमें चर्चा न हुई हो। इसी कारण इसे ज्ञान का महासागर कहा जाता है। इस अंग की एक अन्य विशेषता भी है सूत्र के प्रारंभ में मंगल । इसके अतिरिक्त अन्य किसी भी अंग अथवा अंगबाह्य ग्रन्थ में मंगल का कोई विशेष पाठ उपलब्ध नहीं होता। अन्त में शांतिकर श्रुत देवता का भी
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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