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________________ अंग साहित्य : एक पर्यालोचन १२५ प्रमाण २४ दंडकों के जीवों के उपपात का वर्णन है। उनतीसवें से छप्पनवें उद्देशक में चार राशियुग्म प्रमाण भवसिद्धिक, सतावन से चौरासी तक के उद्देशकों में चार राशियुग्म प्रमाण अभवसिद्धिक, पच्यासीवें से एक्सौ बारहवें उद्देशक तक चार राशियुग्म प्रमाण सम्यग्दृष्टि भवसिद्धिक, एकसौ तेरहवें से एकसौ चालीसवें तक चार राशियुग्म प्रमाण मिथ्यादृष्टि भवसिद्धिक कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या वाले २४ दंडक के जीवों के उपपात का वर्णन है। १४१ से १६८ तक के उद्देशकों में चार राशियुग्म प्रमाण कृष्णपक्षी और १६६ से १९६ तक के उद्देशकों में चार राशियुग्म प्रमाण शुक्लपक्षी २४ दंडकों के जीवों के उपपात का वर्णन है। प्रस्तुत आगम का महत्व इस प्रकार भगवती (व्याख्याप्रज्ञप्ति) सूत्र में श्रमण भगवान महावीर के स्वयं के जीवन का; उनके शिष्य, भक्त, गृहस्थ, उपासक, अन्य तीथिक और उनकी मान्यताओं का सविस्तृत परिचय प्राप्त होता है। आगम साहित्य में गोशालक के सम्बन्ध में जितनी प्रामाणिक और विस्तृत जानकारी प्रस्तुत आगम में है उतनी जानकारी अन्य आगमों में नहीं है। पुरुषादानीय भगवान पार्श्व के अनुयायियों और उनके चातुर्याम धर्म के संबंध में प्रस्तुत आगम में यत्र-तत्र परिचय प्राप्त होता है और वे भगवान महावीर के ज्ञान से प्रभावित होकर चातुर्याम धर्म के स्थान पर पंच महाव्रत रूप धर्म स्वीकार करते हैं। साथ ही इस आगम में महाराजा कूणिक और महाराजा चेटक के बीच जो महाशिलाकंटक और रथमूशल संग्राम हए थे उन महयुद्धों का मार्मिक वर्णन विस्तार से आया है। उन दोनों महायुद्धों में क्रमश: ५४ लाख और ९६ लाख वीर योद्धा दोनों पक्षों के मारे गये थे। इक्कीस से लेकर तेईसवें शतक तक वनस्पतियों का जो वर्गीकरण है वह बहुत ही अद्भुत है। जैन सिद्धान्त, इतिहास-भूगोल, समाज और संस्कृति, राजनीति आदि पर जो विश्लेषण हुआ है और वह अनुपम है। ३६ हजार प्रश्नोत्तरों में आध्यात्मिक तत्त्व की छटा दर्शनीय है। ऐतिहासिक दृष्टि से आजीविक संघ के आचार्य मंखली गोशाल, जमालि, शिव राजर्षि, स्कन्दक संन्यासी आदि प्रकरण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। तत्त्वचर्चा की दृष्टि से जयन्ती, मदुक श्रमणोपासक, रोह अनगार, सोमिल ब्राह्मण, भगवान पाश्व के शिष्य कालासबेसीपुत्त, तुंगिया नगरी के
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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