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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
तीसवें शतक में बारह अवान्तर शतक और १२४ उद्देशक हैं । प्रस्तुत शतक में कृतयुग्म कृतयुग्म तेइंद्रिय जीवों के उपपाद आदि का ३५ वें शतक के सदृश वर्णन है ।
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अड़तीसवें शतक में १२ अवान्तर शतक और १२४ उद्देशक हैं । प्रस्तुत शतक में ३४ वें शतक के सदृश कृतयुग्म कृतयुग्म चतुरिन्द्रियों के उपपादादि का वर्णन है ।
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उनचालीसवें शतक में १२ अवान्तर शतक और १२४ उद्देशक हैं । प्रस्तुत शतक में भी ३४वें शतक के सदृश असंज्ञी पंचेन्द्रियों के उपपात आदि का वर्णन है ।
चालीसवें शतक में २१ अवान्तर शतक हैं और प्रत्येक शतक के ११-११ उद्देशक हैं । इस प्रकार कुल २३१ उद्देशक हैं। प्रस्तुत शतक में संज्ञी पंचेन्द्रिय महायुग्मों के उपपात आदि का वर्णन ३४वें शतक के सहरा ही है ।
इकतालीसवें शतक में ११६ उद्देशक हैं। प्रथम उद्देशक में राशियुग्म के ४ भेद हैं। उन भेदों के हेतु, कृतयुग्म, राशि प्रमाण २४ दंडकों के जीवों 'के उपपात, सान्तर - निरन्तर उपपात, कृतयुग्म के साथ अन्य राशियों के सम्बन्ध का निषेध, जीवों के उपपात की पद्धति, हेतु, आत्मा का असंयम आदि का वर्णन करने के बाद सलेश्य और सक्रिय आत्मा असंयमी और क्रियारहित की सिद्धि प्रभृति विषयों पर विश्लेषण किया है।
द्वितीय उद्देशक में योज (जिस राशि में चार का भाग देने पर तीन शेष रहे वह योज कहलाती है) राशिप्रमाण २४ दंडक के जीवों का उपपात, तृतीय उद्देशक में द्वापर और चतुर्थ उद्देशक में कल्योज राशिप्रमाण २४ दंडकों के जीवों के उपपात के संबंध में निरूपण किया गया है । पाँचवें उद्देशक में कृष्ण लेश्या वाले कृतयुग्मप्रमाण, छठे में कृष्णलेश्या वाले व्योज राशि प्रमाण, सातवें में कृष्णलेश्या वाले द्वापरयुग्म प्रमाण और आठवें में कृष्णलेश्या वाले कल्योज प्रमाण इस तरह २४ दंडकों के जीवों के उपपात का वर्णन किया गया है। नवें से बारहवें उद्देशक तक नीललेश्या वाले, तेरहवें से सोलहवें उद्देशक तक कापोतलेश्या वाले, सत्रहवें से बीसवें उद्देशक तक में तेजोलेश्या वाले, इक्कीसवें से चौबीसवें उद्देशक तक में पद्मलेश्या वाले और पच्चीसवें से अट्ठाईसवें उद्देशक तक में शुक्ललेश्या वाले चार राशियुग्म