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________________ अंग साहित्य : एक पर्यालोचन १२३ युक्त मन का विवेचन है। नवें अवान्तर शतक में अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय, दसवें अवान्तर शतक में कृष्णलेश्यी, ग्यारहवें में नीललेश्यी, बारहवें में कापोतश्यायुक्त अभवसिद्धिक का वर्णन है । पैंतीसवें शतक में प्रथम एकेन्द्रिय महायुग्म शतक से लेकर दूसरा, तीसरा यावत् बारह एकेन्द्रिय महायुग्म शतक तक बारह अवान्तरं शतक हैं। उनमें प्रथम के आठ अवान्तर शतकों में ११-११ उद्देशक हैं और अन्त के चार अवान्तर शतकों के ९ ९ उद्देशक हैं। इस तरह प्रस्तुत शतक के कुल १२४ उद्देशक हैं । प्रथम एकेन्द्रिय महायुग्म अवान्तर शतक के प्रथम उद्देशक में महायुग्म के १६ भेद, उनके हेतु, कृतयुग्म, राशिरूप, एकेन्द्रिय का उपपात, एक समय के उपपात, जीवों की संख्या, कृतयुग्म कृतयुग्म राशि रूप एकेन्द्रियों के आठ कर्मों के बन्ध, वेदन, साता असातावेदन, लेश्याएँ, शरीर के वर्ण, अनुबन्धकाल, सभी जीवों के इस राशि में उपपात आदि २० स्थानों का निरूपण किया है। द्वितीय उद्देशक में प्रथम समयोत्पन्न कृतयुग्मकृतयुग्म एकेन्द्रियों के उपपात व अनुबंध का निरूपण है । अप्रथम समयोत्पन्न कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों के उपपात का चरम समय अचरम समय कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण के एकेन्द्रियों का उपपात प्रथम समय, अप्रथमसमय, प्रथम चरम समय, प्रथम अचरम समय, चरम-अचरम समय, अचरम- चरम समय, कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों के उपपात का वर्णन है। इसी तरह द्वितीय से लेकर बारहवें अवान्तर शतक में क्रमश: कृष्णलेश्यी, नीललेश्यी, कापोतलेश्यी, भवसिद्धिक, कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक, नीलेश्यी भवसिद्धिक, कापोतलेश्यी भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक कृष्ण-नीलकापोती अभवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों के उत्पाद का पहले अवान्तर शतक के सदृश वर्णन किया गया है। छत्तीसवें शतक में बारह अवान्तर शतक और उनके १२४ उद्देशक हैं। इन बारह अवान्तर शतकों में बेइन्द्रिय महायुग्म के उपपात आदि का वर्णन है । एतदर्थ इन शतकों का नाम बेइन्द्रिय महायुग्म रक्खा गया है। उनमें से प्रथम आठ अवान्तर शतकों के ११-११ उद्देशक हैं और शेष ४ के - उद्देशक हैं। इन सब अवान्तर शतकों के उद्देशकों में पैंतीसवें शतक के एकेन्द्रिय महायुग्म अवान्तर शतकों के उद्देशकों के सदृश ही बेइन्द्रियों के उत्पाद, अनुबन्ध और लेश्याओं के क्रमशः कृतयुग्म कृतयुग्म बेइन्द्रियों का वर्णन है ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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