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१२२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
अट्ठाईसवें शतक में भूतकाल के बन्धादि का वर्णन किया गया है। उन्तीसवें शतक में पापकर्मों के वेदन का विवरण किया गया है।
तीसवें शतक में क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी इन चार समवसरणों का वर्णन है। संसार के सभी जीव चार समवसरण वाले हैं। लेश्या यावत् उपयोग वाले व २४ दंडक के जीव समवसरण व उनके आयु का बंध, भव्य और अभव्य का वर्णन है।
इकत्तीसवें शतक में चार युग्म से नरक के उपपात का विवरण है।
बत्तीसवें शतक में चार प्रकार के क्षुद्र युग्म, नरयिकों का उद्वर्तन तथा उत्पत्ति, उद्वर्तनों की संख्या, मण्डकप्लुति से उद्वर्तन लेश्या और यावत् शुक्लपक्ष तक चिंतन किया गया है।
तेतीसवें शतक में बारह अवान्तर शतक हैं जिन्हें बारह एकेन्द्रिय शतक के नाम से कहा गया है। प्रथम आठ अवान्तर शतकों के ११-११ और अन्तिम चार के 8-6 उद्देशक की गणना से इस तेतीसवें शतक में कुल १२४ उद्देशक हैं । पहले एकेन्द्रिय शतक के पहले उद्देशक में एकेन्द्रिय के पृथ्वी, अप, तेजस, वायु और बनस्पति ये पांच भेद और उनके उपभेद बताते हुए उनके कर्मप्रकृतियों के बन्धन, वेदन और शेष दश उद्देशकों में क्रमशः अनन्तरोपपन्न एकेन्द्रिय, परम्परोपपन्न एकेन्द्रिय, अनन्तरावगाढ़ व परम्परावगाढ़ पंचकाय, अनंतर पर्याप्त पञ्चकाय, परम्पर पर्याप्त पञ्चकाय, अनन्तराहारक और परम्पराहारक पंचकाय, चरम और अचरम पंचकाय आदि का सूक्ष्म विवेचन किया गया है। द्वितीय एकेन्द्रिय (अवान्तर) शतक में कृष्णलेश्यी, नीललेश्यी, कापोतलेश्यी, भवसिद्धिक, कृष्णलेश्यायुक्त भवसिद्धिक एकेन्द्रिय, नीललेश्या, कापोतलेश्या के साथ अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय, कृष्णलेश्यी, नीललेश्यी और कापोतलेश्यी एकेन्द्रिय अभव्य का विवेचन किया गया है।
चौंतीसवें शतक में बारह अवान्तर शतक हैं और प्रथम आठ अवान्तर शतकों के ११-११ उद्देशक और अन्तिम चार अवान्तर शतकों के ६-६ उद्देशकों की परिगणना से प्रस्तुत शतक में कुल १२४ उद्देशक हैं। प्रथम एकेन्द्रिय शतक समुच्चय में अनन्तरोपपन्न से अचरम तक ११ उद्देशक हैं। कृष्णलेश्यी, नीललेश्यी, कापोतलेश्यी एकेन्द्रिय, भवसिद्धिक एकेन्द्रिय, कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक, नीललेश्यायुक्त, कृष्णलेश्या और कापोतलेश्या