________________
अंग साहित्य : एक पर्यालोचन ११७ वीर के पास श्रमण बनकर मोक्ष प्राप्त करते हैं; इस पर प्रकाश डाला गया है।
बारहवें शतक में श्रावस्ती के शंख एवं पोक्खली श्रावकों के सामूहिक रूप से खा-पीकर पाक्षिक पौषध करने का उल्लेख है। श्रमणोपासिका जयन्ती भगवान महावीर से प्रश्न करती है-'भन्ते ! जीव शीघ्र ही गुरुत्व को कैसे प्राप्त होता है ?' महावीर ने फरमाया---'जयन्ती! प्राणातिपात आदि १८ दोषों का सेवन करने से जीव गुरुत्व को प्राप्त होता है और उसकी निवृत्ति से जीव लघुत्व को प्राप्त होता है।'
जयन्ती-भगवन् ! मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता जीव को स्वभाव से प्राप्त होती है या परिणाम से ?
महावीर-मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता जीव में स्वभाव से होती है, परिणाम से नहीं।
जयन्ती-भन्ते ! जीव सोता हुआ अच्छा है या जागता हुआ?
महावीर-कितने ही जीवों का सोना अच्छा है, और कितने ही जीवों का जागना अच्छा है। जो जीव अधार्मिक हैं, अधर्म में आसक्त हैं उनका सोना अच्छा है और जो जीव धार्मिक हैं उनका जागना अच्छा है, क्योंकि धार्मिक जागकर धर्म की प्रवृत्ति करता है और अधार्मिक जागकर स्वयं व दूसरे जीवों के लिए ऐसी प्रवृत्ति करता है जिससे कर्मबन्धन होता है आदि।
राजा उदयन भगवान महावीर के कौशांबी पधारने पर अत्यन्त आल्हाद के साथ दर्शनार्थ जाता है। इस शतक में सात पृथ्वियाँ, पुद्गलपरावर्तन पर विचार, रूपी-अरूपी पर चिन्तन, लोक व आठ प्रकार की आत्मा का वर्णन है।
. तेरहवें शतक में सात पृथ्वियों में नारक जीवों की उत्पत्ति, भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों का वर्णन, नारक का आहार, राजा उदयन की दीक्षा का विचार और अपने पुत्र अभीचिकुमार के हितार्थ केशी का राज्याभिषेक, अभीचिकुमार का मनोमालिन्य और सम्राट कूणिक के पास उसका गमन, अभीचिकुमार का श्रावक धर्म ग्रहण व बिना आलोचना किए मरण जिससे असुर योनि में उत्पत्ति आदि का वर्णन है। प्रस्तुत शतक में भाषा, मन, काय और मरण पर चिन्तन किया गया है और कर्म प्रकृति, श्रमण की विक्रिया और समुद्धात पर प्रकाश डाला है।