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________________ अंग साहित्य : एक पर्यालोचन ११५ पृथ्वी के समान पानी, अग्नि, वायु और वनस्पतिकाय के जीव श्वास लेते हैं, निश्वास छोड़ते हैं और आहारादि ग्रहण करते हैं। आधुनिक विज्ञान ने वनस्पतिकाय के जीवों पर तलस्पर्शी अनुशीलन व परिशीलन कर उनके रहस्यों को प्रगट किया है किन्तु पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु के जीवों पर पर्याप्त शोध नहीं हुई है। वनस्पति क्रोध और प्रेम भी प्रदर्शित करती है । स्नेहपूर्ण सद्व्यवहार से बह पुलकित हो जाती है और घृणापूर्ण दुर्व्यवहार से वह मुरझा जाती है। विज्ञान के प्रस्तुत परीक्षण का भगवान महावीर के इस सिद्धान्त से समर्थन होता है। उन्होंने वनस्पति में दश संज्ञाएं मानी हैं; आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथून संज्ञा, परिग्रह संज्ञा, कोष संज्ञा, मान संज्ञा, माया संज्ञा, लोभ संज्ञा, लोकसंज्ञा और ओघसंज्ञा । इन संज्ञाओं का अस्तित्व रहने से वनस्पति आदि वही व्यवहार अस्पष्ट रूप से करती हैं जो मानव स्पष्टरूप से करता है। इस प्रकार ऐसे सैकड़ों विषय प्रस्तुत आगम में प्रतिपादित हैं, जिन्हें सामान्य बुद्धि ग्रहण नहीं कर सकती। कुछ विषय तो आधुनिक विज्ञान में भी नूतन शोधों द्वारा ग्राह्य हो चुके हैं और अन्य विषय आधुनिक शोध की प्रतीक्षा में हैं। इस शतक में आगे स्वकृत दु:ख का वेदन, उपपात के असंयत आदि १३ बोल, कांक्षा मोहनीय आदि २४ दण्डकों के आवास, स्थिति आदि स्थान, सूर्यलोक, अलोक, क्रिया, महावीर और रोहक के प्रश्नोत्तर, लोक स्थिति में मशक का रूपक, जीव और पुद्गल के सम्बन्ध में सछिद्र नौका का रूपक जीवादि का गुरुत्व-लघुत्व विचार, सामायिक आदि पदों के अर्थ, उपपात, विरह प्रभृति अनेक बातों का वर्णन है। द्वितीय शतक में श्वासोच्छवास का विचार, स्कन्धक परिव्राजक के लोक एवं मरण सम्बन्धी प्रश्न और भगवान महावीर के द्वारा उसका समाधान व भगवान के पास उसका प्रवजित होना, तुंगिया के श्रावकों द्वारा पापित्यों से प्रश्नोत्तर, समुद्घात, सात पृथ्बियाँ, इन्द्रियों का विचार, उदक गर्भ विचार, तिर्यक-मानुषी गर्भ, एक जीव के पिता-पुत्र का उत्कृष्ट परिमाण आदि का वर्णन है। तृतीय शतक में तामली तापस की उत्कृष्ट तपःसाधना का वर्णन है। चमरेन्द्र के पूर्वभव में वह पूर्ण नामक तापस था। उसका सौधर्म देवलोक में
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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